मंदिरों का सौंदर्यीकरण करने की आवश्यकता नहीं है, वे पर्यटन स्थल नहीं, तीर्थस्थल हैं – अनिल कुमार धीर

ओडिशा के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर के सौंदर्यीकरण के लिए 22 प्राचीन मठ तोड़े गए। इसके विरोध में जब हमने न्यायालय का रुख किया, तो हमें ही 1 लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया गया। जो मंदिर पहले से ही सुंदर हैं, उनका सौंदर्यीकरण क्यों करना चाहिए? प्लास्टिक के पेड़ और खंभे खड़े करना, सब कुछ चमकाना, ये सब करने के लिए ये पर्यटन स्थल नहीं हैं, ये तीर्थस्थल हैं। फल वाले, फूल वाले, बाहर बैठने वाले बाबा, ये सभी मंदिरों की ‘स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र’ (एक दूसरे पर निर्भर स्थानीय व्यवस्था) का हिस्सा हैं। उन्हें हटाना कैसे उचित हो सकता है? जगन्नाथ मंदिर में दो रत्नभंडार हैं, जिनमें से एक पिछले 46 वर्षों से नहीं खुला है। वहां गिरावट हो रही है। अब नई सरकार ने रथ यात्रा के दौरान केवल 7 दिनों में उसकी मरम्मत करने का निर्देश दिया है। वास्तव में 7 दिनों में यह संभव नहीं है। हमारे दृष्टिकोण से मंदिर की स्थापत्य संरचना का सही रहना महत्वपूर्ण है; भले ही धन प्राप्त न हो, ऐसा प्रतिपादन वैश्विक हिंदू राष्ट्र महोत्सव में ‘पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित मंदिरों की सुरक्षा के लिए भारत सरकार से अपेक्षाएं’ सत्र में ‘इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज’ के संयोजक श्री. अनिल कुमार धीर ने किया।

श्री धीर ने आगे कहा कि हम किस आधार पर विश्वगुरु बनने जा रहे हैं? मोहनजोदड़ो, हड़प्पा के अनुसंधान के बाद कोई बड़ा अनुसंधान नहीं हुआ है। अनुसंधान करने के लिए खुदाई करने की आवश्यकता नहीं है, अन्य क्षेत्रों में भी हमारी प्राचीन संस्कृति के कई प्रमाण मिलते हैं; लेकिन उनके बारे में अनुसंधान नहीं हो रहा है। अब वैज्ञानिक प्रगति के कारण लोगों के जीन कौन से हैं, यह पता चलता है। इससे प्राचीन काल में यहां से ही लोग बाहर गए हैं, यह आने वाले समय में स्पष्ट हो सकता है। इसे ‘रिवर्स इनोवेशन’ कहा जाएगा। इस बारे में अनुसंधान सामने आने पर, भविष्य में इतिहास का पुनर्लेखन करने का समय आएगा।

ओडिशा के सूर्य मंदिर में 37 टन वजन का पत्थर शिखर पर कैसे गया? इसका उत्तर अभी तक सही तरीके से नहीं मिला है। उस निर्माण में 1 इंच की भी गलती होती, तो पूरा निर्माण गलत हो सकता था। ऐसे मंदिर कैसे बनाए गए? ऐसे मंदिर संस्कृति के अनुसंधान की आवश्यकता है।

‘इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज’ के माध्यम से श्री. धीर द्वारा किए गए कार्य :

‘इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज’ (इनटैक) को केंद्र सरकार ने ‘सेंटर फॉर एक्सलेंस’ का दर्जा देकर 100 करोड़ रुपये दिए हैं और अभी 100 करोड़ रुपये और देने वाले हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के बाद ‘इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज’ दूसरी सबसे बड़ी संस्था है।

ओडिशा में 300 मंदिर पुरातत्व विभाग के अंतर्गत संरक्षित हैं। 100 साल पुराना मंदिर पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आता है। ओडिशा के 17 जिलों के 300 साल पुराने 6,500 मंदिर मैंने खोजे हैं और बाकी 13 जिलों में खोज अभियान चलाने पर ऐसे 15,000 मंदिर आसानी से मिल सकते हैं।

छत्तीसगढ़ से महानदी ओडिशा में आती है। उसका आधा हिस्सा यानी 400 कि.मी. के क्षेत्र में दोनों किनारों पर हमने बैलगाड़ी से घूमकर सर्वेक्षण किया। इस नदी में 63 मंदिर पिछले 80 वर्षों से पानी के नीचे चले गए हैं। ‘उनमें से 2-3 मंदिरों को बाहर निकालकर उनका पुनर्निर्माण करें’, ऐसी मांग हमने की थी।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एक पुरानी और सक्षम सरकारी संस्था है। उसने दुनिया भर में कई काम किए हैं; लेकिन वर्तमान में ताजमहल, कुतुबमीनार आदि से उसे निधि मिल रहा है, इसलिए उनका ध्यान उन पर है। आज बंगाल में नए मंदिरों की तुलना में अधिक संख्या उन मंदिरों की है जो ध्वस्त हो गए हैं यानी लगभग पांचवें हिस्से में। कोई नहीं जाता, फिर भी पुरानी मस्जिदों का रखरखाव सरकारी पैसों से किया जाता है। आज हिंदुओं के प्राचीन मंदिरों को देखने के लिए पैसे देने पड़ते हैं। हमारे पूर्वजों की धरोहर हमें भावी पीढ़ी को जैसी की तैसी देनी चाहिए।

आज कई चोरी हुई प्राचीन मूर्तियां वापस मिल गई हैं, जो जिलाधिकारी, पुलिस के पास पड़ी हैं; क्योंकि उन मूर्तियों का रिकॉर्ड नहीं है; इसलिए हमने प्रत्येक मंदिर की मूर्ति की सभी जानकारी रिकॉर्ड करने का काम शुरू किया है।

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