बिहार में स्वास्थ्य सेवाए बेपटरी

कैमूर (भभुआ) स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही एवं अधिकारियों के मिली भगत से बिना रजिस्ट्रेशन के दर्जनों क्लीनिक संचालित किए जा रहे है। जिससे लोगो की असमय मौत हो रही है। स्वास्थ्य विभाग अबैध क्लिनिको पर प्रतिबंध लगाने में असफल साबित हो रहा है। जिले के अधौरा, चैनपुर, रामपुर व भगवानपुर प्रखंड के भोले भाले अधिकांश मरीज प्राइवेट अस्पताल के चंगुल में फसते जा रहे है। मामले की शिकायत मिलने पर मानवाधिकार सी डब्लू ए के चेयरमैन योगेंद्र कुमार सिंह (योगी) ने प्रकरण की शिकायत राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग में भेजकर फर्जी क्लीनिको/अस्पतालों के खिलाफ कठोरतम करवाई करने के लिए अनुरोध किया था। अयोग ने मामले की गंभीरता को देखते हुए चीफ सेक्रेटरी से रिपोर्ट तलब किया। अयोग के निर्देशों के अनुपालन में विशेष सचिव गृह विभाग (विशेष शाखा) विहार सरकार से दिनांक 17/07/2023 को एक पत्र प्राप्त हुआ जिसमे अपर मुख्य सचिव स्वास्थ्य विभाग पटना बिहार को मामले में कार्यवाही के लिए संबोधित था। दिनांक 28/08/2023 को अनुस्मारक जारी करने बाद, अवर सचिव स्वास्थ्य बिहार सरकार से दिनांक 11/01/2024 को एक पत्र प्राप्त हुआ जिसमे प्रस्तुत किया गया कि मामले की तथ्यात्मक जांच सीएमओ कैमूर (भभुआ) द्वारा प्रतिनुक्त एक टीम के माध्यम से की गई थी। जांच टीम ने दिनांक 04/09/2023 से दिनांक 26/09/2023 तक जिले के अधिकतर क्षेत्र में काम कर रहे विभिन्न अस्पतालों और क्लिनिको का दौरा किया जिसमे फर्जी अस्पतालों/क्लिनिको को बंद कराने का निर्देश दिया गया। अयोग ने कैमूर जिले की बेपटरी स्वास्थ्य सेवाए देसखर चकित है। अयोग ने मामले पर चिंता व्यक्त करते हुए अपने निर्देश में कहा कि यदि बिहार के एक जिले की जमीनी हकीकत यह है,तो विहार के अन्य बड़े जिलों की स्थिति बदतर हो सकती है। इस मामले में यह स्पष्ट है कि कैमूर जिले में अनियमितताओ से भरे 51 निजी अस्पताल/क्लीनिक चल रहे थे। उन्होंने लागू कानूनों के तहत निर्धारित विभिन्न वैधानिक प्रावधानों का उलंघन किया था। आयोग ने कहा कि यह मामला तब प्रकाश में आया जब मानवाधिकार कार्यकर्ता ने इस मुद्दे को आयोग के संज्ञान में लाया। तब तक राज्य के अधिकारी जिले के भीतर ऐसी इकाइयों के बारे में स्पष्ट रूप से अनभिज्ञ थे। प्रचलित कानून के तहत किसी क्लीनिकल प्रतिष्ठानों को प्रमाणित करने के बाद राज्य यह दलील देकर कमजोर आधार पर खड़ा होता है कि वह ऐसे निजी प्रतिष्ठान में किसी भी तरह की गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार नहीं है।

इस लिए किसी दुर्घटना की स्थिति में राज्य खुद को दायित्व से मुक्त नहीं हो सकता है। राज्य की प्राथमिक जिम्मेदारी है कि वह अपने अधिकारों के माध्यम से स्वास्थ्य और सम्मान जनक जीवन के मौलिक अधिकारों को सुरक्षित रखे और नागरिकों के लिए समृद्ध बनाए, को भारत के संविधान के अनुच्छेद – 21 के तहत शामिल है। पंजाब राज्य बनाम यम, यस चावला में यह माना गया है कि अनुच्छेद-21 के तहत सुनिश्चित जीवन के अधिकार में स्वास्थ्य और क्लीनिकल देखभाल का अधिकार भी शामिल है। जब राज्य के नाम पर ऐसे अस्पताल और क्लीनिक खुल रहे है और उनकी प्रभावी निगरानी करने की अपनी जिम्मेदारी से विमुख है, तो यह कल्पना कैसे संभावना से वास्तविकता में बदल सकती है। यह एक ऐसा मामला है, जिससे सरकारी अधिकारियों की लापरवाही स्पष्ट है। हालाकि अमान्य इकाइयों को बंद कराना ही शायद इसका जवाब नही। अयोग ने कहा कि हालाकि कैमूर जिले में जो कुछ सामने आया वह हिमशैल का एक छोटा सा हिस्सा प्रतीत होता है और यह मामला विहार के शेष (37) जिला में ऐसे सभी अमान्य अस्पतालों/ क्लिनिको की वास्तविक संख्या का पता लगाने के लिए विस्तृत निरीक्षण और मौके पर जांच की मांग करता है। आगे अयोग ने मुख्य सचिव विहार सरकार को निर्देश देते हुए कहा कि विहार के अन्य जिलों में भी इसी तरह की कवायद पर विचार करना चाहिए। साथ ही अधिकारियों को यह जांचना चाहिए कि अस्पताल आदि क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के अनुरूप है या नही। तदनुसार अयोग के निर्देशों के अनुसार कार्यवाही का निर्देश दिया जाता है।

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