भारत सरकार ने किसानों को अच्छी गुणवत्ता के बायोस्टिमुलेंट्स की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए उर्वरक (नियंत्रण) आदेश, 1985 के तहत बायोस्टिमुलेंट्स को शामिल किया है। समुद्री शैवाल बायोस्टिमुलेंट्स की आठ श्रेणियों में से एक है। एफसीओ के अंतर्गत भारत सरकार को समुद्री शैवाल के ब्यौरों को उल्लिखित करने और इसकी गुणवत्ता को विनियमित करने का अधिकार प्राप्त है।

इसके अतिरिक्त भारत सरकार मत्स्य पालन विभाग के माध्यम से देश में समुद्री शैवाल की खेती को बढ़ावा दे रही है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के अंतर्गत 98.75 करोड़ रुपये के केंद्रीय हिस्से के साथ 193.56 करोड़ रुपये की कुल लागत की परियोजनाओं के एक सेट को मंजूरी दी गई है और देश में समुद्री शैवाल की खेती के विकास के लिए तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों और अनुसंधान एवं विकास संस्थानों को धन जारी किया गया है।
स्वीकृत परियोजनाओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- विभिन्न तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए स्वीकृत इनपुट के साथ 45,095 राफ्ट और 66,330 मोनोलाइन तमिलनाडु में और दीव (दादरा नगर हवेली तथा दमन दीव के केंद्र शासित प्रदेश) में एक समुद्री शैवाल बैंक।
- समुद्री शैवाल बीज संयंत्र उत्पादन वाणिज्यिक रूप से मूल्यवान समुद्री शैवाल की पायलट पैमाने पर खेती तथा समुद्री शैवाल की खेती, जागरूकता और प्रशिक्षण आदि के लिए व्यवहार्यता अध्ययन के लिए अनुसंधान एवं विकास संस्थानों को 4.65 करोड़ रुपये की कुल लागत के साथ स्वीकृत 06 परियोजनाएं।
– गुजरात में कच्छ की खाड़ी (कोरी क्रीक क्षेत्र) में समुद्री शैवाल की खेती को भी बढ़ावा दिया जाता है। अनुसंधान एवं विकास संस्थानों को पीएमएमएसवाई के अंतर्गत स्वीकृत तीन प्रस्ताव यथा
(क) केन्द्रीय नमक और मरीन केमिकल्स अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीएसएमसीआरआई),
(ख) केन्द्रीय मरीन मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-सीएमएफआरआई) और
(ग) एनएफडीबी, मात्स्यिकी विभाग की सहायता से निजी उद्यमी स्थानीय ग्रामीणों के सहयोग से समुद्री शैवाल की खेती व्यवहार्यता, प्रशिक्षण और प्रदर्शन परियोजनाएं चला रहे हैं।
सरकार परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट (एमओवीसीडीएनईआर) की योजनाओं के माध्यम से 2015-16 से देश में जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है। पीकेवीवाई को पूर्वोत्तर राज्यों के अलावा देश भर में अन्य सभी राज्यों में लागू किया जा रहा है, जबकि एमओवीसीडीएनईआर योजना विशेष रूप से पूर्वोत्तर राज्यों में लागू की जा रही है। दोनों योजनाएं जैविक खेती में लगे किसानों को शुरू से अंत तक समर्थन पर बल देती हैं यानी उत्पादन से प्रसंस्करण, प्रमाणन और विपणन तथा कटाई के बाद प्रबंधन प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण योजना का अभिन्न अंग हैं।
दोनों योजनाओं के अंतर्गत जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जाता है और किसानों को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के माध्यम से पीकेवीवाई के अंतर्गत 3 वर्ष के लिए 15000 रुपये प्रति हेक्टेयर और एमओवीसीडीएनईआर के अंतर्गत 3 वर्ष के लिए 15000 रुपये प्रति हेक्टेयर की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। किसानों के पास किसी भी जैविक आदान का उपभोग करने के लिए डीबीटी राशि का उपयोग करने का विकल्प है। कृषि मंत्रालय समुद्री शैवाल आधारित जैविक उर्वरकों का प्रयोग करने के लिए किसानों को अलग से प्रोत्साहन नहीं देता है।
यह जानकारी आज राज्यसभा में केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने लिखित उत्तर में दी।