राजा महेंद्र प्रताप की 138वीं जयंती के अवसर पर भारत मंडपम, नई दिल्ली में आयोजित समारोह में उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूल पाठ (अंश)

मैं राजा महेंद्र प्रताप की 138वीं जयंती समारोह में भाग लेते हुए बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। राजा महेंद्र प्रताप एक जन्मजात राजनयिक और राजनेता, भविष्यद्रष्टा और राष्ट्रवादी थे। उन्होंने राष्ट्रवाद, देशभक्ति, दूरदर्शिता का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए अपने आचरण से दर्शाया कि राष्ट्र के लिए क्या किया जा सकता है।

यह कितनी अद्भुत दूरदर्शिता है! अब यह आसान लगता है, लेकिन तब यह बेहद मुश्किल था।

राष्ट्रवाद की भावना से भरा लगभग 30 वर्ष की आयु का यह व्यक्ति अखण्ड भारत की स्वतंत्रता चाहता था और 29 अक्टूबर 1915 को उसने इसे उल्लेखनीय रूप से प्रदर्शित किया।

काबुल में पहली प्रांतीय सरकार और सम्मानित श्रोतागण को स्मरण रहे कि यह ब्रिटिश गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट से दो दशक पहले की बात है क्योंकि तभी अंग्रेजों ने हमें किसी तरह की शासन व्यवस्था देने के बारे में विचार किया। क्या विश्व इतिहास में इसका कोई समानांतर उदाहरण है? नहीं। यह एक और एकमात्र घटना है।

और उनकी शासन कला, समावेशिता और उल्लेखनीय अवधारणा देखिए। वे राष्ट्रपति बने, मौलाना मोहम्मद बरकतुल्लाह उप-प्रधानमंत्री, डॉ. चेम्पाकरमन पिल्लई विदेश मंत्री, उबैदुल्लाह सिंधी को गृह मंत्री नियुक्त किया गया और डॉ. मथुरा सिंह को बिना विभाग का मंत्री बनाया गया।

यह वास्तव में उनकी दूरदर्शिता दर्शाता है! यह प्रक्रिया हमारी सभ्यतागत समावेशिता की भावना प्रतिबिंबित करती है जो 5,000 वर्षों के समय की कसौटी पर खरी उतरी है।

वर्ष 1932 में इस महान आत्मा, महान दूरदर्शी, जो सामान्य बातों से परे थे क्योंकि स्वतंत्रता ही है जिससे मानवता प्रेम करती है, उन्हें एनए नीलसन ने नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया था।

और इसका आधार क्या था? वही भूमिका जिसके लिए महात्मा गांधी प्रसिद्ध हुए, दक्षिण अफ्रीका में गांधी का अभियान। जब मैं नामांकन पढ़ूंगा, तो समय नहीं लूंगा। कृपया इसे पढ़ें, क्योंकि हर शब्द में उस महान इंसान का व्यक्तित्व झलकता है।

न्याय का यह कैसा उपहास है, कैसी त्रासदी है। हम अपनी स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में हैं, पर हम इस महान व्यक्ति के ऐसे वीरतापूर्ण कार्यों को मान्यता देने में विफल रहे हैं, बुरी तरह असफल रहे हैं। हमारे इतिहास ने उन्हें वह स्थान नहीं दिया है जिसके वे हकदार हैं।

अगर आप हमारी आज़ादी की बुनियाद को देखें तो हमें बहुत अलग तरीके से पढ़ाया गया है। हमारी आज़ादी की बुनियाद राजा महेंद्र प्रताप सिंह और अन्य गुमनाम नायकों या कम चर्चित नायकों के सर्वोच्च बलिदान पर टिकी है।

बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती मनाने के लिए हाल ही में उदयपुर के कोटरा की अपनी यात्रा के दौरान मैंने अपने मित्रों के साथ 1913 के मंगर हिल की दिल दहला देने वाला घटना सुनी। उस वर्ष, 1913 में जलियांवाला बाग की घटना से बहुत पहले 1507 आदिवासियों को ब्रिटिश हुकुमत ने गोलियों से छलनी कर दिया था।

यह कैसा नरसंहार था! कैसा कायरतापूर्ण कृत्य था! इतिहास ने इसे अधिक स्थान नहीं दिया। मैं यह बताने का प्रयास कर हूं कि ब्रिटिश हुकूमत की इस तरह की बर्बरता तथा महाराजा सूरजमल और राजा महेंद्र प्रताप सिंह की देशभक्ति की गाथा को क्यों इतिहास में अपर्याप्ता से दर्ज की गई? उन्हें इतिहास में जगह क्यों नहीं मिली? यह विशेष अवसर उन्हें स्मरण करने की उल्लेखनीय घटना है।

हमारी इतिहास की किताबों में हमारे नायकों के साथ अन्याय किया गया है। इतिहास के साथ छेड़छाड़ की गई है और आजादी दिलाने में केवल कुछ लोगों के नाम एकाधिकार के तौर पर दर्शाया गया है। यह हमारे अंत:करण को कचोटता है और हमारी आत्मा और हृदय पर बोझ है।

मुझे पूरा विश्वास है कि इसमें हमें बड़ा बदलाव लाना होगा और यह 1915 में पहली बार भारत सरकार के गठन से बेहतर कुछ नहीं हो सकता।

हम ऐतिहासिक भूमिका निभाने वाले लोगों को कृपालु, चाटुकार, श्रेय देकर पोषित नहीं कर सकते, पर दूसरों द्वारा निभाई गई भूमिका को भी नकारा नहीं जाना चाहिए। हम अपने नायकों को कम कद्दावर नहीं दिखा सकते। आज हम उन्हीं में से एक की चर्चा कर रहे हैं। इस पीढ़ी और आगमी पीढ़ियों में देशभक्ति की भावना जागृत करने के लिए बिना किसी लाग-लपेट के ऐतिहासिक विवरण देना अनिवार्य है।

कल्पना कीजिए कि किसे उपाधि प्रदान की जाएगी। डॉ. बीआर अंबेडकर को यह उपाधि 1990 में मिली। क्यों? इसमें देरी क्यों हुई?

मानसिकता कैसी रही है इसकी कल्पना कीजिए। मुझे सांसद और मंत्री बनने का सौभाग्य मिला। राजनीतिक बदलाव हुए और फिर हाल ही में चौधरी चरण सिंह, कर्पूरी ठाकुर को सम्मानित किया गया। ये नायक हमारे हृदय में बसते हैं। ये हमारे मस्तिष्क पर हावी हैं। उन्हें किसानों पर भरोसा था और वे ग्रामीण भारत में विश्वास करते थे।

मेरा सौभाग्य रहा कि मुझे उपराष्ट्रपति और राज्य सभा के सभापति के रूप में शासन से जुड़ने का अवसर मिला। भारत की इन दो महान आत्माओं को भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

हमें चिंतन करने की आवश्यकता है जो हो गया सो हो गया पर आगे का रास्ता सही हो। विकसित भारत का निर्माण किसान की भूमि से होता है। विकसित भारत का रास्ता कृषि भूमि से होकर जाता है। किसानों की समस्याओं का निराकरण तीव्र गति से होना चाहिए।

किसान परेशान है तो देश की आन बान को बहुत बड़ा बट्टा लगता है और ज्यादा यह इसलिए होता है कि हम मन की बात को मन में रख लेते हैं। आज के दिन इस पावन दिवस पर मैं अपना संकल्प जाहिर करता हूं कि किसान की समस्या का निराकरण करने के लिए मेरे दरवाजे 24 घंटे खुले हैं। ऐसा करके मैं आजादी को एक नया आयाम देने में सहायक बनूंगा, राजा महेंद्र प्रताप की आत्मा को शांति मिलेगी।

हमने लंबे समय तक उन लोगों की अनदेखी की है जो हमारे मार्गदर्शक रहे हैं। सच्चे मायने में उन्होंने देश के लिए सर्वोच्च न्योछावर किया है।

जनजातीय दिवस अब मनाना चालू किया है। क्या उम्र थी बिरसा मुंडा की? चलो देर आए दुरुस्त आए। नेताजी सुभाष के पराक्रम दिवस मनाना शुरू किए जाने के समय मैं पश्चिम बंगाल का राज्यपाल था!

राजा महेंद्र प्रताप तो उनके पहले थे, एक तरीके से नेताजी की इंडियन नैशनल आर्मी की शुरुआत करने वाले वो थे। मुझे याद है मैं उस जगह गया अंडमान निकोबार में जहां 1945 में नेताजी बोस ने झण्डा फहराया था और मेरा मन बड़ा प्रसन्न हुआ कि तीस साल पहले यह नेक काम राजा महेंद्र प्रताप ने किया था।

हर बार एक सोच मन में आता है कि हमको स्वतंत्र भारत में क्या करना पड़ेगा कि हमारे वर्ग के लोगों ने जो महारत हासिल किया है उसका उचित आदर हो उचित सम्मान हो। वर्तमान व्यवस्था ठीक है, आर्थिक प्रगति जबरदस्त है।

हमारी तेजी से आर्थिक वृद्धि हो रही है और बुनियादी ढांचे का उल्लेखनीय विकास हो रहा है। हमारी वैश्विक छवि बहुत अच्छी है लेकिन जैसा मैंने कहा कि 2047 तक एक विकसित राष्ट्र का दर्जा प्राप्त करने की पूर्व शर्त है कि हमें अपने किसानों को खुशहाल बनाना होगा।

हमें याद रखना होगा अपनों से नहीं लड़ा जाता है, अपनों को नहीं छकाया जाता है, छकाया दुश्मन को जाता है अपनों को गले लगाया जाता है। कैसे नींद आ सकती है जब किसान की समस्याओं का समाधान तीव्रता से नहीं हो रहा है।

मुझे बड़ी प्रसन्नता है कृषि मंत्री शिवराज चौहान चर्चा कर चुके हैं, हम लगे हुए हैं। आह्वान करता हूं किसान बंधुओ से, इस देश के अंदर समस्याओं का निपटारा बातचीत से होता है समझायी से होता है राजा महेंद्र प्रताप की एक से एक संवाद होता था। अडिग टकरावपूर्ण रुख एक खराब कूटनीति है।

हमें समाधान के लिए, चर्चा के लिए खुला रूख अपनाना होगा क्योंकि यह देश हमारा है, यह देश ग्रामीण पृष्ठभूमि से प्रभावित है और मैं मानकर चलता हूं कि मेरे किसान बंधु जहां भी हैं और जो किसी भी आंदोलन में सक्रिय हैं, मेरी बात उनके कानों तक पहुंचेगी और वे इस ओर ध्यान देंगे। आप में सभी लोग मेरे से ज्यादा जानकार हैं, ज्यादा अनुभवी हैं। मुझे विश्वास है कि किसानों की समस्या के शीघ्र समाधान के लिए सकारात्मक ऊर्जा का सम्मिलन होगा।

वे सांसद थे। मैंने उनकी पूरी कार्यवाही देखी और मुझे एक बहुत खास बात नजर आई, और मुझे पता लगा कि कितने दूरदर्शी थे, वे कितनी बातों का ध्यान रखते थे।

22 नवंबर 1957 को लोक सभा में वे एक प्रस्ताव लाए और प्रस्ताव का मुद्दा क्या था? कि हमें कुछ लोगों का सम्मानित करना चाहिए और क्यों करना चाहिए? क्योंकि उन्होंने देश के मामलों में बहुत बड़ा योगदान किया है, आज़ादी में किया है अन्यथा भी किया है।

इसलिए उन्होंने एक प्रस्ताव पेश किया कि तीन सज्जनों को विशेष रूप से सम्मानित किया जाना चाहिए। वीर सावरकर, वीरेंद्र कुमार घोष जो अरविंदो जी के भाई थे, डॉ. भूपेन्द्रनाथ दत्त जो विवेकानंद जी के भाई थे। क्या चयन किया उन्होंने।

अब, हमारे साथ तो वही होता है, अब नहीं होने देंगे। उस प्रस्ताव का तत्कालीन सरकार ने विरोध किया। राजा महेंद्र प्रताप के मन में इतनी कहानी आई कि उनको कहना पड़ा कि इस फैसले के विरोध में मुझे छोड़ना पड़ रहा है। मुझे उम्मीद है कि हर बंगाली और हर मराठा बहिर्गमन करेगा।

उन्होंने अपनी वेदना प्रकट की। सम्मानित श्रोतागण, माननीय सदस्यगण, यह मर्मस्पर्शी क्षण क्षेत्रीय और वैचारिक सीमाओं से परे स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान देने की राजा साहब की दृढ़ प्रतिबद्धता का उदाहरण है। क्या हम ऐसे महापुरुष का कुछ भी नहीं कर सकते?

हम असहाय नहीं हैं, आइये हम सब मिलकर सुनिश्चित करें कि भारत माता के इस महान सपूत को उचित सम्मान मिले।

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