राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी), भारत द्वारा दामोदरम संजीवय्या राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (डीएसएनएलयू) के संयुक्त तत्वावधान में उनके विशाखापट्टनम परिसर में मछुआरों के अधिकारों पर आयोजित एक दिवसीय खुली चर्चा मछुआरों के मानव अधिकारों के हित में कई महत्वपूर्ण सुझावों के साथ संपन्न हुई। चर्चा की अध्यक्षता एनएचआरसी की कार्यवाहक अध्यक्ष श्रीमती विजया भारती सयानी ने की। उन्होंने कहा कि मछुआरा समुदाय भारत की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए, उनके अधिकारों का संरक्षण और संबंधित चुनौतियों का समाधान करना उनकी गरिमापूर्ण आजीविका के लिए महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि आयोग मछुआरों के अधिकारों के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है। इस संदर्भ में, उन्होंने नाविकों के अधिकारों के संरक्षण हेतु आयोग द्वारा की गई पहलों का भी उल्लेख किया। उन्होंने आयोग के कामकाज के विभिन्न पहलुओं और समाज के विभिन्न कमजोर वर्गों के अधिकारों के संरक्षण और संवर्धन के लिए इसके हस्तक्षेप के विविध क्षेत्रों और केंद्र, राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों के प्रशासनों को इस संबंध में जारी की गई विभिन्न परामर्शियों पर भी प्रकाश डाला।
इससे पहले दामोदरम संजीवय्या राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (डीएसएनएलयू) के कुलपति प्रो. डी. सूर्य प्रकाश राव ने प्रतिभागियों का स्वागत किया और चर्चा का संक्षिप्त विवरण दिया, जिसे तीन तकनीकी सत्रों में विभाजित किया गया था। इनमें भारत के मछुआरा समुदायों के मानव अधिकार उल्लंघन, मछली पकड़ने के अधिकार और पर्यावरण संबंधी मुद्दे और मछुआरों के लिए सामाजिक सुरक्षा उपाय और कल्याणकारी योजनाएँ शामिल थीं।
भारत के मछुआरा समुदाय के मानव अधिकार उल्लंघन पर केन्द्रित पहले सत्र में वक्ताओं ने अर्थव्यवस्था में मत्स्य पालन की महत्वपूर्ण भूमिका और जोखिमपूर्ण कामकाजी परिस्थितियों के कारण उनके सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि मछुआरों की सुरक्षा के उद्देश्य से बनाए गए कानूनों के बावजूद, उनके मानव अधिकारों का हनन जारी है, जिसके लिए जागरूकता पैदा करना आवश्यक है। उन्होंने मछुआरों के अधिकारों और आजीविका की रक्षा के लिए मछली पकड़ने की स्थाई प्रथाओं, जलवायु लचीलेपन और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर भी बल दिया। आंध्र विश्वविद्यालय के प्रो. ई. उदय भास्कर रेड्डी ने प्रदूषण के प्रभाव और प्रकृति का सम्मान करने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार पर जोर दिया। एनएफडीबी की वरिष्ठ कार्यकारी (तकनीकी) डॉ. दीपा सुमन ने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के महत्व को रेखांकित किया, जो सुरक्षा उपायों, बीमा और बुनियादी ढांचे के विकास के माध्यम से मछुआरा समुदाय का समर्थन करती है।
मछली पकड़ने के अधिकार और पर्यावरणीय मुद्दों पर केन्द्रित दूसरे तकनीकी सत्र में, डॉ. जो. के. किझाकुडन, आईसीएआर-सीएमएफआरआई ने महाराष्ट्र और तमिलनाडु में बेहतर स्थितियों के विपरीत, खराब शासन के कारण आंध्र प्रदेश में मछुआरों के सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि श्रीकाकुलम के मछुआरे प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण ओडिशा की ओर पलायन कर रहे हैं। डॉ. एस.एस. राजू, आईसीएआर-सीएमएफआरआई ने मछली पकड़ने में पीढ़ीगत फंसाव, वैकल्पिक नौकरियों की कमी, प्रतिकूल जीवन स्थिति और औद्योगिक कचरे से पर्यावरण क्षरण पर चर्चा की। उन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और बेहतर सुरक्षा उपायों की मांग की। डॉ. दिव्या कर्नाड, अशोका विश्वविद्यालय, सोनीपत और प्रो. वी. राजा लक्ष्मी,भूतपूर्व प्रोफेसर, आंध्र विश्वविद्यालय ने पारंपरिक मछुआरों के अधिकारों का संरक्षण करने, आवश्यक सेवाएं प्रदान करने और उनके कल्याण के समर्थन के लिए सामुदायिक और व्यक्तिगत दोनों तरीकों पर विचार करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
मछुआरों के लिए सामाजिक सुरक्षा उपायों और कल्याणकारी योजनाओं पर केन्द्रित तीसरे तकनीकी सत्र में, वीआईटी-एपी विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ लॉ के डीन और प्रोफेसर डॉ. सी. एच. बेनर्जी ने बांग्लादेशी जलक्षेत्र में प्रवेश करते समय गिरफ्तार किए जाने वाले भारतीय मछुआरों के सामने आने वाली कानूनी चुनौतियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने समुद्री कानूनों और नियमों पर शिक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया, और डीएसएनएलयू जैसे स्थानीय लॉ स्कूलों से मछुआरों के लिए आउटरीच और शिक्षा प्रयासों में शामिल होने का आग्रह किया। उन्होंने अस्पष्ट समुद्री सीमाओं की जटिलताओं पर भी चर्चा की, विशेष रूप से कच्चातीवु के आसपास, और अनजाने में अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र पार करने वाले मछुआरों की सुरक्षा के लिए कानूनी ढांचे और बीमा कवरेज की वकालत की।
समापन सत्र में मछुआरा समुदाय के प्रतिनिधियों की समस्याओं को सुना गया।उन्होंने इस अवसर पर अपने समुदाय के सामने आने वाली चुनौतियों को स्पष्ट किया, जिसमें सरकारी कार्यक्रमों के बारे में सीमित जागरूकता और अवैध तटीय विकास और प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव शामिल थे।
चर्चा के दौरान सामने आए कुछ प्रमुख सुझाव इस प्रकार थे:
• तटीय क्षेत्रों में स्थित संस्थाओं के माध्यम से स्थायी मत्स्य पालन को बढ़ावा देने हेतु समुद्री कानूनों और नियमों पर मछुआरा समुदाय की शिक्षा और जागरूकता आवश्यक है;
• मछुआरों के कल्याण के लिए सरकारी कार्यक्रमों के बारे में जागरूकता भी बढ़ाई जानी चाहिए;
• तटीय क्षेत्रों के आसपास समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले अवैध तटीय विकास और प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों की जाँच की जानी चाहिए;
• मछुआरों को सुरक्षित कार्य स्थितियों, उचित मुआवजे और आवश्यक सेवाओं तक पहुंच के उनके अधिकारों की वकालत करके उन्हें सशक्त और संरक्षित किया जाना चाहिए;
• तटीय राज्यों को मछुआरों के कल्याण के लिए एक-दूसरे की सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने में सहयोग करने की आवश्यकता है ताकि उनके अंतर्राज्यीय प्रवास को रोका जा सके।
प्रतिभागियों में भारत सरकार के मत्स्य विभाग के प्रतिनिधि, आंध्र विश्वविद्यालय, अशोका विश्वविद्यालय और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-सीएमएफआरआई), राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड जैसे अन्य शैक्षणिक संस्थानों के प्रोफेसर, साथ ही अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन, सीएसओ और निजी संस्थान शामिल थे। इस कार्यक्रम में लगभग 50 मछुआरों और उनके परिवारों ने भी भाग लिया।