पशुपालन एवं डेयरी विभाग (डीएएचडी), मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय, केन्द्र सरकार के सहयोग से खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा पशु संबंधी प्राथमिकता वाले संक्रामक रोगों पर आयोजित एक तीन दिवसीय कार्यशाला कल नई दिल्ली में सफलतापूर्वक संपन्न हुई। इस कार्यशाला में आईसीएआर संस्थानों, पशु चिकित्सा विश्वविद्यालयों, राज्य पशुपालन विभागों, एनआईएएच, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, एनसीडीसी तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन, जेएचपीआईईजीओ, ब्रूक्स इंडिया, यूएसएआईडी और एफएओ ईसीटीएडी टीम जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों सहित अग्रणी संस्थानों के 69 विशेषज्ञ शामिल हुए।
समापन सत्र में पशुपालन एवं डेयरी विभाग (एएचडी) की सचिव श्रीमती अलका उपाध्याय ने मुख्य भाषण दिया। उन्होंने अपने भाषण में पशु स्वास्थ्य में भारत की बढ़ती आत्मनिर्भरता को रेखांकित किया और राष्ट्रीय नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत निम्नलिखित चार गंभीर बीमारियों से निपटने में विभाग की प्रमुख उपलब्धियों पर रोशनी डाली: खुरपका और मुंहपका रोग (एफएमडी), पेस्ट डेस पेटिट्स रूमिनेंट्स (पीपीआर), ब्रुसेलोसिस और क्लासिकल स्वाइन फीवर। इन कार्यक्रमों को देशव्यापी टीकाकरण अभियानों द्वारा समर्थन दिया जाता है, जो केन्द्र सरकार द्वारा पूरी तरह से वित्त पोषित होते हैं, जिसमें स्वदेशी रूप से विकसित टीकों का उपयोग किया जाता है।
श्रीमती उपाध्याय ने आठ राज्यों में एफएमडी मुक्त क्षेत्र स्थापित करने की योजनाओं की रूपरेखा भी प्रस्तुत की, जहां उन्नत टीकाकरण प्रयास चल रहे हैं। इस रणनीतिक कदम से देश के पशु उत्पादों के लिए विस्तारित निर्यात अवसरों का मार्ग प्रशस्त होने की उम्मीद है, जिससे देश की वैश्विक बाजार में उपस्थिति बढ़ेगी। उन्होंने पशु स्वास्थ्य में सुधार के उद्देश्य से प्राथमिकता वाली बीमारी की सूची को अंतिम रूप देने में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों के सहयोगात्मक प्रयासों और सभी हितधारकों की प्रतिबद्धता की सराहना की और इस कार्यशाला के आयोजन में उनके महत्वपूर्ण समर्थन के लिए एफएओ और यूएसएआईडी के प्रति आभार व्यक्त किया।
समापन समारोह में पशुपालन आयुक्त डॉ. अभिजीत मित्रा, संयुक्त सचिव (पशुधन स्वास्थ्य) श्रीमती सरिता चौहान और भारत में एफएओ प्रतिनिधि श्री ताकायुकी हागीवारा भी शामिल हुए।
इस कार्यशाला का एक प्रमुख परिणाम शीर्ष 20 पशु संक्रामक रोगों की प्राथमिकता वाली सूची को बनाना था, जिसे गंभीरता, संक्रामकता, उपलब्ध हस्तक्षेप, प्रभाव, व्यापकता और राष्ट्रीय महत्व के आधार पर चुना गया था। एक कार्य योजना तैयार की गई, जिसमें निम्नलिखित पाँच महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया: समन्वय, संचार, निगरानी और निरीक्षण, रोकथाम और नियंत्रण, रोग चिकित्सा तथा सामाजिक-आर्थिक और आकस्मिक योजना।
कार्यशाला का समापन देश भर में क्षेत्रीय स्तर पर इसी तरह के पशु रोग प्राइऑरटाइजेशन एक्सरसाइजेज की प्रतिकृति बनाने का आग्रह करते हुए कार्य करने हेतु एक जोरदार आह्वान के साथ हुआ। इस दृष्टिकोण का उद्देश्य क्षेत्र-विशिष्ट पशु रोगों को संबोधित करना है, जिससे विशिष्ट और प्रभावी रोग नियंत्रण और रोकथाम रणनीतियों को सुनिश्चित किया जा सके।
यह कार्यशाला पशु स्वास्थ्य की रक्षा हेतु देश में चल रहे प्रयासों में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जो वन हेल्थ दृष्टिकोण के प्रति एक मजबूत प्रतिबद्धता को दर्शाता है। सामूहिक उद्देश्य स्पष्ट है: भविष्य की पीढ़ियों के लिए जानवरों, मनुष्यों और पर्यावरण के स्वास्थ्य को सुरक्षित करना।