इंजीनियर श्याम सुन्दर पोद्दार
हमारे देश के स्वाधीनता का इतिहास हमे इस तरह लिख कर पढ़ाया गया जिसका सत्यता के साथ दूर दूर का सम्बन्ध नहीं। हमे पढ़ाया जाता है लार्ड येटली भारत की स्वतंत्रता के पक्षधर थे। वे जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री निर्वाचित हुवे उन्होंने भारत को स्वाधीनता दे दी। पर सत्य यह है लार्ड येटली ने खुश होकर भारत को स्वतन्त्र नहीं किया था,भारत के क्रांतिकारियों ने ब्रिटेन को मजबूर कर दिया था भारत को स्वतंत्रता प्रदान करने के लिये। यह सत्य स्वयं ब्रिटेन के प्रधानमंत्री लार्ड येटली ने ब्रिटेन की संसद में “India indipendence Act”संसद पटल पर रखने के बाद प्रतिपक्ष के नेता लार्ड चर्चिल के प्रश्न कि ब्रिटेन के लिये भारत को नहीं बचाया जा सकता। प्रधानमंत्री लार्ड येटली ने ब्रिटेन की कमज़ोरियो को इस तरह व्यक्त किया। “
Britain is transferring power due to the fact that(1) Indian mercenary Army is no longer loyal to Britain and (2)Britain cannot afford to have a large British Army to Hold down India.” इसका अर्थ यह हुवा ब्रिटिश भारतीय,सेना जिसकी ब्रिटिश वफ़ादारी के चलते अंग्रेज भारत पर शासन करते थे,वह ब्रितानिया हुकूमत के प्रति वफ़ादार नहीं रही व ब्रिटेन अब भारत पर नियंत्रण के लिये इतनी बड़ी सेना रख नहीं सकता। भारत के लोगो को जो पढ़ाया जाता है उसका लेश मात्र भी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के ब्रिटिश संसद में दिये भारत को स्वतंत्रता देने में ब्रिटेन की मजबूरी से नहीं मिलता। यह इसलिये हो पाया कि भारत के तमाम क्रांतिकारियों ने भारत से लेकर जापान तक हिन्दू महासभा के झण्डे तले एकत्रित होकर भारतीय राष्ट्रीय सेना के माध्यम से सशस्त्र लड़ाई लड़ी। द्वितीय बिश्व युद्ध को लड़ने के लिये अंग्रेजों को अपनी २ लाख की सेना को १० लाख की बनानी थी। वीर सावरकर सरीखे क्रांतिकारियों ने हिंदू महासभा के झण्डे तले सारे भारत में कैम्प लगा कर ६ लाख देशभक्त हिन्दू युवकों को सेना में प्रवेश दिलाया इस निर्देश के साथ की समय आने पर तुम स्वयं समझ जावोगे बंदूक़ की नाल किधर घुमानी है। कांग्रेस अध्यक्ष पद से पदत्याग करने के बाद कांग्रेस से वहिष्कृत होने के बाद,सुभाष चन्द्र बोस बम्बई जाकर वीर सावरकर से परामर्श के लिए मिले। वीर सावरकर के परामर्श को मानते हुवे सुभाष चन्द्र बोस भारत से भाग कर जर्मनी होते हुवे जापान हिन्दू महासभा के अध्यक्ष श्री रासबिहारी बोस से मिले व उनके हाथ से भारतीय राष्ट्रीय सेना की बागडोर सँभाली। भारतीय राष्ट्रीय सेना का निर्माण जापान के हातो क़ैद किये गये ५००० भारतीय सैनिकों से हुवा। बाद में सिंगापुर में इसमें ४५ हज़ार ब्रिटिशसेना के सैनिक इसमें शामिल हो गये व यह ५०००० भारतीय सैनिकों की सेना बन गई। सुभाष चन्द्र बोस ने अपने एक रेडियो संदेश में कहा वीर सावरकर जी ने जो सैनिकीकरण किया वे सैनिक ही भारतीय राष्ट्रीय सेना को मिले। भारतीय राष्ट्रीय सेना ने भारत भूमि के अण्डमान को जीत लेने के बाद आज़ाद हिन्द सरकार का गठन किया जिसे बिश्व के ९ शक्तिशाली देशों ने स्वीकृति प्रदान की। भारत भूमि के कोहिमा तक भारतीय राष्ट्रीय सेना पहुँच गई। परन्तु हिरोशिमा नागासाकी पर अमेरिका द्वारा अनुबम गिराने के बाद जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया व ब्रिटिश सरकार ने भारतीय राष्ट्रीय सैनिकों को युद्ध अपराधी बना कर भारत लाए व उनका मिलिटरी ट्रायल लाल क़िले में किया। भारतीय राष्ट्रीय सेना के लाल क़िले के ट्रायल पर ब्रिटिश सेना में प्रवेश कराये गये देश भक्त सैनिकों में बग़ावत के स्वर उभरने लगे। ब्रिटिश सेना प्रमुख औचलिंक ने वायसराय को लिखा सेना में १८५६ जैसी स्तिथि पैदा हो गई है। हमे भारत को फिर से जीतना होगा। इस लिये लन्दन से १ लाख की अंग्रेज़ी सेना भेजी जाय। वायसराय ने सेना प्रधान औचलिंक के सेना की इस स्तिथि पर लन्दन समाचार भेजा हमे भारतीयो के साथ समझौता कर लेना चाहिये। १८ फ़रवरी १९४६ भारतीय राष्ट्रीय सेना के सेनापतियों को दण्डित करने पर हमारी नौसेना के बम्बई, कराची केन्द्र पर नौसैनिकों की बग़ावत हो गई। ब्रिटिश अधिकारियों पर तोप के गोले भारतीय नौ सैनिक दागने लगे। यूनियन जैक को उड़ा कर तिरंगा फहरा दिया। वायु सेना के सैनिक हड़ताल पर चले गये। स्थल सेना में बग़ावत आरम्भ हो इसके पहले २३ फ़रवरी १९४६ वायसराय ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेतावो को बुला कर कहा आपलोग बम्बई नौसैनिकों से हमारा सन्देश कह दीजिये।भारतीय राष्ट्रीय सेना के सेनापतियों का दण्ड वापस लिया जायेगा व भविष्य में भारतीय राष्ट्रीय सेना के सैनिकों का ट्रायल नहीं होगा तथा भारत को आज़ादी दी जायेगी। भारतीय राष्ट्रीय सेना के सैनिकों के प्रति नेहरू सरकार ने जो दुर्व्यवहार किया वह बहुत ही घृणित है। सुभाष चन्द्र बोस वायुयान दुर्घटना में मारे नहीं गयें थे इस बात के साक्षी सुभाष चन्द्र बोस के निजी चिकित्सक डॉ.राव को नेहरू ने आजीवन जेल में रखा। वीर सावरकर को गाँधी हत्या के बाद जान से मारने का नेहरू ने प्रयास किया। इसमें बिफ़ल होने पर वीर सावरकर को गाँधी हत्या काण्ड में फसाया। जज आत्माचरण ने वीर सावरकर को गाँधीहत्या से दोष मुक्त ही नहीं किया बल्कि सरकार को आदेश दिया सावरकर ने देश के लिये बहुत सहा है,इस बात की जाँच होनी चाहिए वीर सावरकर को गाँधी हत्याकाण्ड में क्यों फ़साया गया। २० जनवरी १९४८ गाँधी जी पर बिरला हाउस में प्राणघातक बम हमलाहोने के बाद,सरकार को ज्ञात हो गया था,गाँधी को देश विभाजन से त्रस्त लोग जान से मार सकते है। नेहरू सरकार ने भविष्य में राजनैतिक लाभ उठाने के लिये गाँधी को मरने दिया व गाँधी को बचाने का कोई प्रयास नहीं किया। गाँधी के शव का पोस्ट मार्टम नहीं होने देना व गोडसे का यह कहना मैंने तो गाँधी को मात्र दो गोली मारी थी। पर उन्हें लगी दो से अधिक इन सब बातो से गाँधी हत्या में सरकारी षड्यंत्र की बू मिलती है। गोडसे ने गांधी को देश का विभाजन करने के लिये दण्डित किया पर पुस्तकों मे हिन्दू समाज को बदनाम करने के लिये गोडसे को हिंदुवादी कह कर पढ़ाया जाता है व सरासर झूठ की गोडसे गाँधी के हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रयास से विचलित थे व इसलिए उनकी हत्या की।
देश में गाँधी के जन्म दिन पर राष्ट्रीय अवकाश ही नेहरू सरकार ने नहीं दिया बल्कि उनको राष्ट्रपिता भी बना दिया, इससे लोगो में यह धारणा बने देश को गाँधी ने अहिंसा के माध्यम से स्वाधीन किया इसी लहजे में गाने भी लिखवायें गये,”देदी हमे आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल”जबकि गाँधी का देश का विभाजन करने, २० लाख हिन्दुओं को मरवाने व अंग्रेजों साम्राज्य के लिये काम करने के अलावा कुछ नहीं है।
लहजें में गाने लिखवाये गये,”देदी हमे आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल,साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल। जबकि ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में दक्षिण अफ़्रीका से लाए गये गाँधी का ब्रिटिश सरकार को बचाने,देश का विभाजन करके २० लाख हिन्दुओं को मरवाने के अलावा कोई काम नहीं। ब्रिटिश साम्राज्य को बचाने के लिये अंग्रेजों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की। कालांतर में कांग्रेस में दो ग्रुप बन गये। एक ब्रिटिश सत्ता के प्रति निष्ठावान ग्रुप जो कहता था,हम ब्रिटिश को भारत में रखेंगे व उन्नति करेंगे। इस दल के नेता थे गोखले। दूसरा ब्रिटिश विरोधी दल था जो यह कहता था स्वाधीनता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है इसे हम लेकर रहेंगे व उन्नति करेंगे। इस ग्रुप के नेता थे लोकमान्य तिलक। नरम दल के नेता गोखले वृद्ध हो चले थे,उन्होंने अपना उत्तराधिकारी दक्षिण अफ़्रीका के गाँधी को चुना। गाँधी २० वर्ष दक्षिण अफ़्रीका में आन्दोलन करके पूरी तरह असफल नेता रहे। उनको भारत में लाना है,अंग्रेज़ी साम्राज्य बचाने के लिये,नरम दल के गोखले के उत्तराधिकारी की बड़ी ज़िम्मेदारी निभानी है। गोखले स्वयं लन्दन गये,वहाँ से दक्षिण अफ़्रीका की सरकार को आदेश हुवा, गोखले आपसे मिलेंगे,उनकी माँगे मान ली जाय। गोखले प्रिटोरिया गये,वहाँ के प्रधानमन्त्री से मिलकर गाँधी की कुछ माँगे मनवायी व ब्रिटिश सरकार ने गाँधी को दक्षिण अफ़्रीका का विजेता बना कर हीरो बनाया। भारत में चंपारन हो, अहमदाबाद हो, महत्वपूर्ण वॉर कौंसिल से तिलक को हटा कर गांधी को सदस्य बनाया। गाँधी को ब्रिटिश हुकूमत ने हीरो बनाया। ब्रिटिश हुकूमत को बचाने के लिये गाँधी भी स्वराज के आन्दोलन को नहीं करके बेमतलब का आन्दोलन करते। १९२० में एक वर्ष में स्वराज लादूँगा के प्रस्ताव के विपरीत टर्की के ख़लीफ़ा की कांग्रेस के मंच से ख़िलाफ़त की लड़ाई लड़ी, १९२९ कांग्रेस के लाहौर के पूर्ण स्वराज के प्रस्ताव की लड़ाई नहीं लड़ कर, नमक की लड़ाई लड़ी। सुभाष चन्द्र बोस ने भारत छोड़ो आंदोलन की रूपरेखा कांग्रेस अध्यक्ष रहते बनाई। गाँधी ने सुभाष बोस का यह भारत छोड़ो आन्दोलन यह कह कर होने नहीं दिया, अभी बिश्व युद्ध चल रहा है,मैं इस समय अंग्रेजों को विपत्ति में नहीं फ़ेक सकता। पर १९४२ में बिश्व युद्ध चल रहा था,इसी समय भारत छोड़ो में थोड़ा संशोधन करके “भारत छोड़ो पर अपनी सेना यहाँ रखो”आन्दोलन छेड़ दिया। अंग्रेज अपनी सेना भारत में रखेंगे,तो भारत क्यों छोड़ेंगे। गाँधी ने यह आन्दोलन अंग्रेजों को भगाने के लिये नहीं,सुभाष चन्द्र बोस जब वर्मा से अपनी सेना के साथ भारत में प्रवेश करे,तो कांग्रेस में उनके जो क्रांतिकारी समर्थक है,वे जेल में रहे,उनका साथ न दे सके,इसलिये किया। क्योंकि अप्रैल १९४२ में बर्मा पर जापान का कब्जाहो गया था। कांग्रेस के हाथ में सत्ता इस लिये आई कि १९४५ के चुनाव में देश का विभाजन गाँधी जी की लाश पर होगा कह कर केंद्रीय लेजिस्लेटिव असेंबली १०२ सदस्यों के ५६ सदस्य जीतने से हुवी। पर गाँधी व कांग्रेस ने १९४५ के चुनाव में दिये गये वादे को तोड़ दिया व देश का विभाजन कर इस्लामिक पाकिस्तान बना दिया। गाँधी की बिडम्बन देखिये, अंग्रेज़ो ने सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनने नहीं दिया,अपने आदमी नेहरू को बनाया। गांधी ने नेहरू के प्रधानमंत्री बनाने की मजबूरी एक पत्रकार को स्पष्ट बतायी हमारे कैम्प में नेहरू ही अंग्रेजों का आदमी था। इस लिये बनाना पड़ा। वीर सावरकर ने कभी अंग्रेजों से माफ़ी नहीं माँगी। जिस आदमी ने अंडमान की काला पानी की जेल से रत्नागिरी में नज़रबंदी में २८ लंबे वर्ष राजनीति नहीं करने की कठिन शर्त से गुज़ारी,उस पर झूठा आरोप लगाते है,सावरकर ने ६-६ बार माफ़ी माँगी। कोई भी क़ैदी सरकार को कोई पत्र लिखता है,उसे क़ानून की भाषा में Mercy Petition कहा जाता है। वीर सावरकर ने भी सरकार को जेल में रहते हुवे ६ पत्र लिखे जो mercypetition कहलाते है। पर इन सभी ६ पत्रों में उन्होंने कभी भी माफ़ी नहीं माँगी। भारत के वर्तमान के रास्ट्रनायकों से स्वाधीन भारत में जन्मी इस पीढ़ी की आशा है,बहुत दिन झूठा इतिहास पढ़ाया गया,भारत की भविष्य की पीढ़ी को तो सच्चा इतिहास पढ़ाये। यह हो गया तो साहसिक कार्य होगा।