केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने यहां सीएसआईआर-सूक्ष्मजीव प्रौद्योगिकी संस्थान (सीएसआईआर-इमटेक) में माइक्रोब रिपोजिटरी और अन्य सुविधाओं का निरीक्षण किया तथा संस्थान में मौजूदा परियोजनाओं की भी जानकारी ली।


समीक्षा के दौरान, डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सूक्ष्मजीव प्रौद्योगिकी जैव प्रौद्योगिकी का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, तथा उन्होंने अगली पीढ़ी की औद्योगिक क्रांति को आकार देने में इसके बढ़ते महत्व पर बल दिया।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को नई बायो-ई-3 नीति के लिए श्रेय दिया, जिसमें बायोमैन्युफैक्चरिंग और बायो फाउंड्री पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया गया है। उन्होंने बायोटेक क्षेत्र में भारत की तीव्र प्रगति के बारे में चर्चा करते हुए कहा, “भारत की जैव अर्थव्यवस्था ने 2014 में 10 बिलियन डॉलर से 2024 में 130 बिलियन डॉलर से अधिक की असाधारण वृद्धि देखी है, और 2030 तक 300 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।”
डॉ. जितेंद्र सिंह ने हाल ही में भारत के पहले स्वदेशी एंटीबायोटिक, नैफिथ्रोमाइसिन के लॉन्च को भी याद किया, जिसे प्रतिरोधी संक्रमणों से निपटने के लिए विकसित किया गया है। उन्होंने कहा कि भारत में बायोटेक स्टार्टअप की संख्या 2014 में केवल 50 से बढ़कर आज लगभग 9,000 हो गई है, जिससे बायोटेक नवाचार के लिए वैश्विक केंद्र के रूप में भारत की स्थिति मजबूत हुई है। इसके अलावा, उन्होंने बताया कि भारत अब जैव-विनिर्माण में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में तीसरे और वैश्विक स्तर पर 12वें स्थान पर है, जो माइक्रोबियल जेनेटिक्स, संक्रामक रोगों, किण्वन प्रौद्योगिकी, पर्यावरण माइक्रोबायोलॉजी और जैव सूचना विज्ञान में अग्रणी अनुसंधान को आगे बढ़ाने में सीएसआईआर-आईएमटेक के बढ़ते महत्व को चिन्हित करता है।
माइक्रोबियल बायोटेक्नोलॉजी में एक प्रमुख अनुसंधान संस्थान, सीएसआईआर-आईएमटेक, अपने माइक्रोबियल टाइप कल्चर कलेक्शन और जीन बैंक (एमटीसीसी) के माध्यम से 14,000 से अधिक माइक्रोबियल उपभेदों का भंडार रखता है। यह राष्ट्रीय भंडार न केवल अनुसंधानकर्ताओं और उद्योगों को प्रमाणित कल्चर प्रदान करता है, बल्कि माइक्रोब से संबंधित चिंताओं में आईपीसी, बीआईएस और एनबीए सहित प्रमुख नियामक प्राधिकरणों का भी समर्थन करता है। यह संस्थान वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए माइक्रोबियल संसाधनों का दोहन करने में सबसे आगे है, जो स्वास्थ्य सेवा, फार्मास्यूटिकल, कृषि और पर्यावरण विज्ञान में अपूर्ण आवश्यकताओं को पूरा करता है।
सीएसआईआर-हिमालय जैवसंसाधन प्रौद्योगिकी संस्थान (सीएसआईआर-आईएचबीटी), पालमपुर से वर्चुअल तौर पर जुड़ते हुए डॉ. सिंह ने कई नई सुविधाओं का उद्घाटन किया और महत्वपूर्ण वैज्ञानिक चर्चाओं में भाग लिया। वे बदलते जलवायु में उच्च ऊंचाई वाले पौधों के अनुकूलन पर ईएमबीओ कार्यशाला (एचईपीएसी) और उद्योग, किसान और शिक्षा (आईएफए) बैठक में शामिल हुए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ऐसी पहल वैज्ञानिक उन्नति, आर्थिक सशक्तिकरण और टिकाऊ कृषि के प्रति भारत सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में एक नए ट्यूलिप गार्डन का वर्चुअल तौर पर शुभारंभ भी किया। उन्होंने वैज्ञानिक हस्तक्षेप के लिए सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर टीम की सराहना की, जिससे अन्य मौसमों में भी ट्यूलिप की व्यापक खेती संभव हुई है। इस मॉडल को अन्य क्षेत्रों में भी दोहराया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने कृषि क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देने वाले संस्थान द्वारा समर्थित कृषि-स्टार्टअप द्वारा विकसित उत्पादों को भी लॉन्च किया।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कई राष्ट्रीय मिशनों का नेतृत्व करने के लिए सीएसआईआर-आईएचबीटी की सराहना की, जिनमें शामिल हैं: सीएसआईआर फ्लोरीकल्चर मिशन – हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड और लद्दाख के 3,800 किसानों को लाभ पहुंचाने वाले 1,000 हेक्टेयर तक फूलों की खेती का विस्तार, जिससे 80 करोड़ रुपये की आय हुई। इसके अलावा इसने अरोमा मिशन, बाजरा मिशन, इम्युनिटी मिशन, वेस्ट टू वेल्थ मिशन, फेनोम इंडिया-सीएसआईआर हेल्थ कोहोर्ट नॉलेजबेस, सीएसआईआर प्रिसिजन एग्रीकल्चर मिशन का भी संचालन किया।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने ऑटोनोमस ग्रीन हाउस, हींग बीज उत्पादन केंद्र, हींग क्यूपीएम सुविधा, सजावटी बल्ब प्रक्रिया संयंत्र और फाइटो-विश्लेषणात्मक सुविधा सहित अत्याधुनिक संयंत्रों का भी उद्घाटन किया।
इसके अतिरिक्त, उन्होंने फाइटो फैक्ट्री सुविधा की आधारशिला रखी और फ्लोरीकल्चर जंक्शन से चांदपुर आरएंडडी फार्म तक सीमेंट कंक्रीट सड़क का लोकार्पण किया।
डॉ. जितेन्द्र सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि वैज्ञानिक अनुसंधान, उद्योग सहयोग और सरकारी नीतियों को एकीकृत करके हिमालयी राज्यों की समृद्ध जैव विविधता का उपयोग आर्थिक समृद्धि के लिए किया जा सकता है, जिससे किसानों को लाभ होगा और भारत के वैज्ञानिक इकोसिस्टम को बढ़ावा मिलेगा।
