श्री गणेश चतुर्थी : शास्त्रानुसार गणेशोत्सव मनाकर श्री गणेश की कृपा संपादन करें

श्री गणेश चतुर्थी का महत्व: आषाढ़ पूर्णिमा से कार्तिकी पूर्णिमा तक, इन 120 दिनोंमें विनाशकारक, तमप्रधान यम तरंगें पृथ्वीपर अधिक मात्रा में आती हैं। इस कालमें उनकी तीव्रता अधिक होती है तथा इसी कालमें अर्थात भाद्रपद शुक्ल चतुर्थीसे अनंत चतुर्दशीतक, श्री गणेश तरंगोंके पृथ्वीपर अधिक मात्रामें आनेसे, यमतरगोंकी तीव्रताको घटानेमें सहायता मिलती है। श्री गणेश चतुर्थीपर तथा गणेशोत्सवकालमें नित्य की तुलनामें पृथ्वीपर गणेशतत्व 1,000 गुना अधिक कार्यरत रहता है।इस कालमें की गई श्रीगणेशोपासना से गणेशतत्व का लाभ अधिकाधिक होता है। श्री गणेश चतुर्थी के दिन पूजन हेतु श्री गणेशजीकी नई मूर्ति लाई जाती है । पूजाघरमें रखी श्री गणेशमूर्तिके अतिरिक्त, इस मूर्तिका स्वतंत्र रूपसे पूजन किया जाता है।

नई मूर्ति का प्रयोजन क्यों ?:
पूजाघर में गणपति की मूर्ति होते हुए भी नई मूर्ति लाने का उद्देश्य इस प्रकार है – श्री गणेश चतुर्थी के समय पृथ्वी पर गणेशतरंगें अत्यधिक मात्रा में आती हैं । उनका आवाहन यदि पूजाघर में रखी गणपति की मूर्ति में किया जाए तो उसमें अत्यधिक शक्ति की निर्मिति होगी । इस ऊर्जित मूर्ति की उत्साहपूर्वक विस्तृत पूजा–अर्चना वर्षभर करना अत्यंत कठिन हो जाता है । उसके लिए कर्मकांड के कड़े बंधनों का पालन करना पड़ता है । इसलिए गणेश तरंगों के आवाहन के लिए नई मूर्ति उपयोग में लाई जाती है । तदुपरांत उसे विसर्जित किया जाता है । सामान्य व्यक्ति के लिए गणेश तरंगोंको अधिक समय तक सह पाना संभव नहीं । इसलिए कि, गणपति की तरंगों में सत्त्व, रज एवं तम का अनुपात 5:5:5 होता है, तथापि सामान्य व्यक्ति में इसका अनुपात 1:3:5 होता है ।

श्री गणेश चतुर्थी के दिन पूजी जानेवाली मूर्ति घर कैसे लाएं ?:
श्री गणेशजी की मूर्ति घर लाने के लिए घर के कर्ता पुुरुष अन्यों के साथ जाए। मूर्ति हाथ में लेनेवाला व्यक्ति सात्विक वेशभूषा अर्थात धोती-कुर्ता अथवा कुर्ता-पजामा पहने। वह सिरपर टोपी भी पहने। मूर्ति लाते समय उसपर रेशमी, सूती अथवा खादी का स्वच्छ वस्त्र डालें। मूर्ति घर लाते समय मूर्ति का मुख लानेवाले की ओर तथा पीठ सामने की ओर हो।मूर्ति के सामने के भाग से सगुण तत्त्व, जब कि पीछे के भाग से निर्गुण तत्त्व प्रक्षेपित होता है। मूर्ति हाथ में रखनेवाला पूजक होता है। वह सगुण के कार्य का प्रतीक है। मूर्तिका मुख पूजक की ओर करने से उसे सगुण तत्त्व का लाभ होता है और अन्यों को निर्गुण तत्त्व का लाभ होता है। मूर्ति घरमें लाते समय हमें ऐसा भाव रखना चाहिए कि वास्तवमें भगवान हमारे घर आनेवाले हैं। श्री गणेशजी की जयजयकार और भावपूर्ण नामजप करते हुए मूर्ति घर लाएं। घर की देहली के बाहर खडे रहें और घर की सुहागिन स्त्री मूर्ति लानेवाले के पैरों पर दूध और तत्पश्‍चात जल डाले। घर में प्रवेश करने से पूर्व मूर्ति का मुख सामने की ओर करें। तदुपरांत मूर्ति की आरती कर उसे घर में लाएं।

श्री गणेशजीके आगमनके उपरांत उनका लाभ कैसे लें ?:
श्री गणेशजी के घर आनेके उपरांत उनका नामजप करें तथा शास्त्रानुसार पूजा करें। सर्वप्रथम आचमन करें। उसके उपरांत देशकाल का उच्चारण कर विधि का संकल्प करें। उसके उपरांत शंख, घंटा, दीप इत्यादि पूजासंबंधी उपकरणोंका पूजन किया जाता है। तत्पश्चात श्री गणेश मूर्ति में प्राणप्रतिष्ठा की जाती है । श्रीगणेशजी को अड़हुल के पुष्प व दूर्वा अर्पण करते हैं। गणेशपूजनमें दूर्वाका विशेष महत्त्‍व है। देवताओंकी भावपूर्ण आरती करें, प्रार्थना के साथ आर्ततासे पुकारें तथा श्री गणपतिजीका गुणगान करनेवाले भजन करें। श्रीगणेशजी को न्युनतम ८ अथवा ८ की गुना में परिक्रमा करें।

इस प्रकार स्वागत के साथ लाई गई श्री गणेशजीकी मूर्तिका पूजन-अर्चन, स्तोत्रपाठ, नामजप इत्यादि कृत्य भावसहित करनेसे हमें श्री गणेशजीके तत्त्वका लाभ मिलता है । साथही वातावरणमें प्रक्षेपित उनसे संबंधित भाव, चैतन्य, आनंद एवं शांतिकी तरंगोंका भी हमें लाभ मिलता है ।

परिवार के किस सदस्य को यह व्रत रखना चाहिए ?:
श्री गणेश चतुर्थी के दिन रखे जानेवाले व्रत को ‘सिद्धिविनायक व्रत’ के नाम से जाना जाता है। वास्तव में परिवार के सभी सदस्य यह व्रत रखें।सभी भाई यदि एक साथ रहते हों, अर्थात सभी का एकत्रित द्रव्यकोष (खजाना) एवं चूल्हा हो, तो मिलकर एक ही मूर्ति का पूजन करना उचित है । यदि सब के द्रव्यकोष और चूल्हे किसी कारणवश भिन्न–भिन्न हों, तो उन्हें अपने–अपने घरों में स्वतंत्र रूप से गणेशव्रत रखना चाहिए। कुछ परिवारों में कुलाचारानुसार अथवा पूर्व से चली आ रही परंपरा के अनुसार एक ही श्री गणेशमूर्ति पूजन की परंपरा है। ऐसे घरों में प्रतिवर्ष भिन्न–भिन्न भाई के घर श्री गणेश मूर्ति की पूजा की जाती है। कुलाचार के अनुसार अथवा पूर्व से चली आ रही एक ही श्री गणेशमूर्ति के पूजन की परंपरा तोड़नी न हो, तो जिस भाई में गणपति के प्रति भक्तिभाव अधिक है, उसी के घर गणपति की पूजा करना उचित होगा।

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