25 जून को भारतीय जनता पार्टी द्वारा “संविधान हत्या दिवस” के रूप में मनाने का निर्णय लेना अत्यंत प्रशंसनीय है। यह दिन 1975 का है, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश की अनदेखी करते हुए देश में आपातकाल की घोषणा की थी। उस समय देश में कोई गंभीर स्थिति नहीं थी, लेकिन उन्होंने अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए यह कदम उठाया।
आपातकाल के दौरान लोक सभा को भंग कर दिया गया, नागरिकों के मौलिक अधिकार समाप्त कर दिए गए, और विपक्ष के नेताओं को गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिया गया। इस समय देश में भय का माहौल था, जिसमें मीडिया पर सेंसरशिप लगाई गई और पुलिस को असीमित अधिकार दिए गए।
हालांकि, इस अराजकता के बीच विपक्षी दलों के युवा कार्यकर्ता सड़कों पर उतरे और लाखों की संख्या में गिरफ्तार हुए। अंततः अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते आपातकाल हटाना पड़ा।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य नेता अक्सर इस विषय का जिक्र करते हैं, लेकिन 49 वर्षों बाद भी, वर्तमान पीढ़ी को उस समय की घटनाओं की पूरी जानकारी नहीं है। आज के बुजुर्गों ने भले ही आंदोलन में भाग लिया हो, परंतु नए युवाओं को इसके बारे में अधिक जानकारी नहीं है।
इस दिन को “काले दिवस” के रूप में मनाने का उद्देश्य देश को उस काले इतिहास से परिचित कराना है। यह अवसर उन सभी लोगों की बलिदान की गाथाओं को पुनः उजागर करेगा, जिन्होंने लोकतंत्र की स्थापना के लिए संघर्ष किया था।
हमारी अपेक्षा है कि ओडिशा सरकार इस दिशा में कदम बढ़ाएगी और आपातकाल के योद्धाओं पहचान दिलाएगी। केन्द्र सरकार को भी इस संबंध में सक्रियता दिखानी चाहिए।
रामरतन शर्मा
उपदेशक, लोकतंत्र सैनानी संघ, ओडिशा