कोई आज मुझसे पूछे कि धर्म संकट कैसा होता है..🙏

नतीजा सोच-सोच के हर पल दिल रोता है..🙏
दिल कहे कुछ और तो दिमाग कुछ कहता है..🙏
हर घड़ी मन में दुविधा और संकटों का बादल छाया रहता है..🙏
किसकी जीत खुशी और किसकी हार का मातम मनाएंगे..🙏
भले कोई भी जीते मगर हम तो खुद से ही हार जायेंगे..🙏
किसके लिए लड़ें हम और किस पर वाणों के तीर चलाएंगे..🙏
दिल होगा छलनी हमारा और हम खुद ही लहू लुहान हो जायेंगे..🙏
जिस ओर देखो सब मुझे अपने ही अपने नजर आते हैं..🙏
सब है मेरे कितने पास मगर हम खुद को बड़ी दूर पाते हैं..🙏
हम करते हैं दुआ कि कोई हल निकल जाए..🙏
मिट जाए सारे गिले शिकवा सबका दिल से दिल मिल जाए..🙏
इस तरह भाई से भाई लड़कर कुछ हासिल कर नहीं पाएगा..🙏
रह जायेगा सिर्फ सर पर तख्त ओ ताज और सारा कारवां लूट जायेगा..🙏
और भाई से भाई दूर हो जाएगा…
भाई से भाई दूर हो जाएगा…🙏🙏🙏
विनीत
प्रदीप शर्मा