राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी), भारत ने भारत में दिव्यां गजनों के लिए कौशल विकास और रोजगार के अवसरों के दृष्टिकोण से समावेशिता की रूपरेखा प्रस्तु्त करने पर ध्यान देने के साथ दिव्यांषगता पर आयोग के कोर समूह की बैठक का आयोजन किया। हाइब्रिड मोड में बैठक की अध्यक्षता एनएचआरसी, भारत के सदस्य, डॉ. ज्ञानेश्वर एम. मुले ने सदस्य, श्रीमती विजया भारती सयानी, संयुक्त सचिव, श्री देवेन्द्र कुमार निम, कोर ग्रुप के सदस्यों, दिव्यां गजनों के सशक्तिकरण विभाग, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, नागरिक समाज, गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि तथा आयोग के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में की।
डॉ. मुले ने कहा कि दिव्यांंगजनों के रोजगार के लिए प्रेरक केस अध्ययनों की मिसाल प्रस्तुित करने वाले उद्यमशीलता उद्यमों को साझा करने की आवश्यकता है, ताकि वहां के मॉडल का बड़े पैमाने पर अनुकरण किया जा सके। उन्होंने कहा कि दिव्यांरगजनों के कल्याण से संबंधित मौजूदा कानूनों और नीतियों के कार्यान्वयन में कमियों की पहचान करने और उन्हें दूर करने हेतु ठोस प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। इसके लिए सभी हितधारकों के बीच एक सहयोगात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
डॉ. मुले ने यह भी कहा कि दिव्यांगजनों तक सुविधाजनक पहुंच सुनिश्चित करने के दृष्टिकोण से सरकारी कार्यालयों, अस्पतालों, स्कूलों सहित सभी सार्वजनिक सुविधाओं की समय-समय पर ऑडिटिंग की आवश्य कता विभिन्न मुद्दों में से एक है। दिव्यांगों को प्रोत्साहन, स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाएं दी जानी चाहिए तथा सभी स्तरों पर धमकाना/बदमाशी एवं इस बदनुमा धब्बेर का अंत होना चाहिए। दिव्यांगजनों के लिए बनाई गई विभिन्न सेवाओं के बारे में जागरूकता फैलाने की जरूरत है।
चर्चाओं को तीन सत्रों में विभाजित किया गया था जिनमें (i) समावेशी शिक्षा में अंतराल को संबोधित करना (ii) दिव्यांगों के रोजगार में कार्यान्वयन ब्लॉकों को नेविगेट/दूर करना और (iii) सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण के साथ एक समावेशी राष्ट्र के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ना शामिल था।
कुछ महत्वपपूर्ण सुझाव इस प्रकार थे:
• केवल सहानुभूतिपूर्ण स्तर पर ही नहीं, बल्कि नीति और वकालत स्तर पर भी जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है।
• दिव्यां़गजनों के कल्याण के लिए दिव्यांरगजनों के अधिकार (आरपीडब्ल्यूडी) अधिनियम में दिए गए प्रावधानों के गैर-अनुपालन की निगरानी करें;
• आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम का लाभ जमीनी स्तर के लाभार्थियों तक पहुंचाने के लिए केंद्रीय स्तर पर एक एसओपी बनाएं;
• दिव्यांतगता अनुकूल बुनियादी ढांचे को लागू करने के लिए वर्तमान आवास और भवन नियमों की समीक्षा करें:
• पहुंच संबंधी दिशा-निर्देशों और उनके कार्यान्वयन में कमियों को दूर करें;
• एक सहानुभूतिपूर्ण वातावरण को बढ़ावा देने पर काम करें ताकि दिव्यांमगता से जुड़े सामाजिक कलंक को कम किया जा सके;
• इसे व्यापक स्पेक्ट्रम बनाने के लिए बेंचमार्क दिव्यां गता का प्रतिशत बढ़ाएं;
• दिव्यांागता अनुकूल पाठ्यक्रम और बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने और शामिल करने हेतु शैक्षणिक संस्थानों के लिए बजट आवंटन बढ़ाएं;
• अधिक विशिष्ट और सुलभ पाठ्यक्रम बनाएं जो दिव्यांगजनों के लिए कौशल विकास और रोजगार के अवसरों में सहायता करें;
• यूएनसीआरपीडी दिशानिर्देशों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करते हुए नियमित आवश्यकता-आधारित मूल्यांडकन और प्रभाव का आकलन करें;
• उद्यमशीलता समर्थन और रणनीतिक निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करने से वास्तव में दिव्यांगजनों की आर्थिक स्वतंत्रता और गरिमा के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगा।
बैठक में सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ सोशल जस्टिस, सेंस इंटरनेशनल इंडिया, एनसीपीईडीपी, राइजिंग फ्लेम, निपमैन फाउंडेशन, टेरासिनी, मिट्टी कैफे जैसे उद्यमशील उद्यम और दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षाविदों सहित विभिन्न हितधारक समूहों के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। मिट्टी कैफे और टेरासिने के बिजनेस मॉडल द्वारा एक नया परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत किया गया था, जो दिव्यांगों के लिए सही उद्यमशीलता मंच और रास्ते प्रदान करने के फायदों पर केंद्रित था, ताकि उनकी क्षमता का सही मायने में उपयोग किया जा सके और ‘दिव्यां गता’ की तुलना में उनकी ‘क्षमता’ पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा सके। मिट्टी कैफे पहला निजी स्वामित्व वाला कैफे है जो वर्तमान में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के परिसर में संचालित हो रहा है और राष्ट्रपति भवन में संचालित होने जा रहा है।
आयोग सरकार को सिफारिशें प्रस्तुित करने हेतु कौशल विकास और रोजगार सहित दिव्यांीगजनों के कल्याण के संबंध में विभिन्न सुझावों पर विचार-विमर्श करेगा।