भारतीय सेना द्वारा 14-16 अक्टूबर 2025 तक आयोजित यूएनटीसीसी प्रमुखों का सम्मेलन 2025 आज उच्च स्तरीय विचार-विमर्श, औपचारिक समारोहों और संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों को मजबूत करने के सामूहिक संकल्प की पुष्टि के साथ संपन्न हो गया।

राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने राष्ट्रपति भवन में एक भेंट के दौरान संयुक्त राष्ट्र सैनिक योगदान देने वाले देशों के प्रमुखों और प्रतिनिधियों के साथ बातचीत की। भारतीय शांति सैनिकों के सकारात्मक योगदान पर प्रकाश डालते हुए, राष्ट्रपति ने स्थायी शांति और समृद्धि की दिशा में अपने संकल्प में सभी भाग लेने वाले देशों की प्रशंसा की। उन्होंने चुनौतीपूर्ण विश्व व्यवस्था में भविष्य के शांति अभियानों के लिए सामूहिक रूप से व्यावहारिक रूपरेखा विकसित करने के लिए यूएनटीसीसी प्रमुखों के सम्मेलन में देशों के एक साथ आने पर प्रसन्नता व्यक्त की।
इससे पहले, विदेश मंत्री, डॉ. एस. जयशंकर ने अपने संबोधन में, उभरती वास्तविकताओं के अनुरूप वैश्विक शांति स्थापना प्रयासों को पुनर्संयोजित करने की आवश्यकता पर बल दिया। इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि गैर-राज्यीय तत्वों और असममित युद्ध के उदय के साथ संघर्षों की प्रकृति बदल गई है, उन्होंने शांति स्थापना के अधिदेशों पर निर्णय सभी हितधारकों, जिनमें सैन्य योगदान देने वाले और मेज़बान देश शामिल हैं, के साथ गहन परामर्श से लिए जाने का आह्वान किया। डॉ. जयशंकर ने इस बात पर बल दिया कि संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना वैश्विक स्थिरता की आधारशिला बनी हुई है, लेकिन इसे यथार्थवादी अधिदेशों, बेहतर तकनीक और शांति सैनिकों की बढ़ी हुई सुरक्षा के माध्यम से उभरती चुनौतियों के अनुकूल होना चाहिए।
“संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में प्रौद्योगिकी का उपयोग” विषय पर एक संवाद सत्र में संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना समिति (टीसीसी) के प्रमुख और प्रतिनिधि तथा 15 उद्योग जगत के प्रतिनिधि एक साथ एकत्र हुए, ताकि परिचालन प्रभावशीलता बढ़ाने में नवाचार और स्वदेशी समाधानों की भूमिका का पता लगाया जा सके। चर्चाओं में परिस्थिति के बारे में जागरूकता, रसद और सैन्य सुरक्षा में सुधार लाने में उभरती प्रौद्योगिकियों की क्षमता पर प्रकाश डाला गया और एक-दूसरे की क्षमताओं और संभावनाओं को साझा करने और उनसे पारस्परिक रूप से लाभ उठाने के अवसर प्रदान किए गए।
थल सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने बुरुंडी, तंजानिया, पोलैंड, इथियोपिया, नेपाल और युगांडा के सेना प्रमुखों के साथ कई द्विपक्षीय बैठकें कीं। रक्षा सहयोग को मज़बूत करने, अंतर-संचालन बढ़ाने और भविष्य के शांति अभियानों में घनिष्ठ समन्वय को बढ़ावा देने पर चर्चा केंद्रित रहीं। इन बैठकों ने कॉन्क्लेव की संवाद, साझेदारी और वैश्विक शांति, स्थिरता और सामूहिक सुरक्षा को बढ़ावा देने की साझा प्रतिबद्धता की व्यापक भावना को प्रतिबिंबित किया।
संयुक्त राष्ट्र टीसीसी प्रमुखों के सम्मेलन के एक भाग के रूप में, नौ परिचालन क्षेत्रों और 41 प्रदर्शकों वाली एक रक्षा प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। इसमें स्वदेशी हथियार प्रणालियों, प्लेटफार्म और अत्याधुनिक तकनीकों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदर्शित की गई। यह प्रदर्शनी रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता पर भारत के बढ़ते ध्यान को दर्शाती है और स्वदेशी नवाचार तथा उद्योग सहयोग के माध्यम से उन्नत सैन्य प्रणालियों के डिज़ाइन, विकास और निर्माण के लिए देश की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है।
इससे पहले, दिन में, प्रतिष्ठित यूएनटीसीसी प्रमुखों ने अपने जीवनसाथी के साथ नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय समर स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की और भारत के वीरों के सर्वोच्च बलिदान को नमन किया। इसके बाद मानेकशॉ सेंटर में एक पौधारोपण समारोह आयोजित किया गया, जो शांति स्थापना की भावना के अनुरूप स्थिरता और हरित भविष्य के प्रति संयुक्त संकल्प का प्रतीक था। ‘पीसकीपर्स ग्रोव’ में लगाए गए अशोक के पौधे राष्ट्रीय पहल – “एक पेड़ माँ के नाम” के अनुरूप हैं, जो कृतज्ञता, देखभाल और मानवता और प्रकृति को जोड़ने वाले पोषण बंधन का प्रतीक है।
मुख्य बातें
सम्मेलन का समापन इस सर्वसम्मत प्रतिबद्धता के साथ हुआ कि संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना को निम्नलिखित के माध्यम से नई वास्तविकताओं के अनुकूल होना चाहिए: –
● सैनिक भेजने वाले देशों की सशक्त आवाज़ के साथ समावेशी निर्णय-प्रक्रिया।
● वास्तविक आदेशों के माध्यम से शांति सैनिकों की सुरक्षा और उनकी संरक्षा सुनिश्चित करना।
● मिशन की सफलता के लिए स्वदेशी और लागत-प्रभावी तकनीकों का लाभ उठाना।
● जटिल परिस्थितियों के लिए सैनिकों को तैयार करने हेतु बेहतर अंतर-संचालनीयता और प्रशिक्षण ढाँचे।
● विश्वास, सहयोग और साझा ज़िम्मेदारी पर आधारित टिकाऊ साझेदारी।
इस सम्मेलन में पिछले तीन दिनों में 32 देशों के यूएनटीसीसी प्रमुख, वरिष्ठ संयुक्त राष्ट्र अधिकारी, नीति निर्माता और उद्योग जगत के दिग्गज शामिल हुए। विचार-विमर्श, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और संचालन संबंधी प्रदर्शनियाँ एक सुरक्षित, समावेशी और स्थिर विश्व व्यवस्था के साझा दृष्टिकोण की दिशा में सहयोगात्मक दृष्टिकोण के माध्यम से आम सहमति बनाने की भारत की प्रतिबद्धता के प्रमाण थे।