हिंदी भाषा पर प्रतिबंध की आशंका पर राष्ट्रहित सर्वोपरि संगठन की राष्ट्रपति से सार्वजनिक स्पष्टीकरण और कार्रवाई की मांग *मुख्यमंत्री श्री एम.के. स्टालिन सार्वजनिक रूप से क्षमा मांगें : सोहन गिरी

नई दिल्ली: राष्ट्रहित सर्वोपरि संगठन के संस्थापक एवं अध्यक्ष सोहन गिरि ने आज राष्ट्रपति को एक औपचारिक पत्र भेजते हुए गहरी चिंता व्यक्त की है कि तमिलनाडु सरकार द्वारा हिंदी भाषा पर संभावित प्रतिबंध लगाए जाने की खबरें सामने आ रही हैं। इन चर्चाओं में हिंदी में लिखे फिल्मी पोस्टर, गाने, साइनबोर्ड और होर्डिंग्स पर रोक लगाने जैसे कदमों पर विचार किए जाने का संकेत मिला है।

श्री गिरि ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इसे न केवल संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ बताया, बल्कि राष्ट्रीय एकता और भाषाई सद्भावना को तोड़ने वाला कदम करार दिया। उन्होंने कहा कि भारत की ताकत उसकी भाषाई और सांस्कृतिक विविधता में है, और हिंदी तथा संस्कृत जैसी भाषाओं ने ऐतिहासिक रूप से देश को जोड़ने में अहम भूमिका निभाई है।

राष्ट्रहित सर्वोपरि संगठन की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए पत्र में निम्नलिखित मांगें प्रमुख रूप से रखी गई हैं:

1. स्पष्ट सार्वजनिक घोषणा – तमिलनाडु सरकार यह स्पष्ट करे कि हिंदी या किसी भी भाषा को प्रतिबंधित करने की कोई योजना नहीं है।
2. औपचारिक वापसी– यदि कोई ऐसा प्रस्ताव विचाराधीन था, तो उसे तत्काल प्रभाव से वापस लिया जाए।
3. सार्वजनिक माफ़ी – मुख्यमंत्री श्री एम.के. स्टालिन सार्वजनिक रूप से क्षमा मांगें और स्पष्ट करें कि भाषाई भेदभाव राज्य की नीति नहीं है।
4. भविष्य की गारंटी – सरकार लिखित आश्वासन दे कि आगे भी किसी भाषा को निशाना नहीं बनाया जाएगा।
5. संवाद और समन्वय – केंद्र सरकार की भाषाई समावेशन संबंधी पहलों के साथ सहयोग किया जाए।

श्री गिरि ने यह भी स्पष्ट किया कि इस पहल का उद्देश्य किसी राज्य विशेष को लक्षित करना नहीं है, बल्कि यह देश में ‘विविधता में एकता’ की भावना को बनाए रखने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि यदि इन मांगों को शीघ्र पूरा नहीं किया गया, तो संगठन कानूनी और जन-संवेदनात्मक अभियान चलाने पर विचार करेगा।

 

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