मुझे यहां आकर अति प्रसन्नता हुई है। जब निमंत्रण मिला, तब स्वाभाविक रूप से मेरे सामने वह नहीं था जो मैं आज देख रहा हूं। मेरे सामने एक महापुरुष का नाम था और दिवस क्या था, यह था। मैंने तुरंत स्वीकार किया और जब से यहां आया हूं, हर पल मेरे लिए सदा यादगार रहेगा।
सबसे पहले आते ही ‘एक पेड़ मां के नाम’, इसकी शुरुआत माननीय प्रधानमंत्री जी ने की, बहुत सोच कर कि क्योंकि यह बात साफ है हमारे पास धरती के अलावा रहने का कोई दूसरा स्थान नहीं है। यह बड़ा क्रांतिकारी कदम होगा और मां के नाम पेड़ लगाने से जो अनुभूति होती है, वह विचित्र है। जिस भी कार्यक्रम में मैं जाता हूं, मैं ऐसा करता हूं। मैं यहां के छात्रों, शिक्षकों और कार्यरत लोगों से विशेष अनुरोध करूंगा कि साठ एकड़ से ज्यादा का यह जो प्रांगण है, इसमें यह सब व्यक्ति अपनी मां के नाम एक पेड़ लगाए। पेड़ लगाकर उसका सृजन भी करें और इसमें तकनीकी सहयोग भी संस्थाओं का लें कि कौन सा पेड़ यहां ज्यादा ठीक रहेगा और किस तरह से इसका विकास हो पायेगा।
दूसरा जो पल मेरे सामने आया, कभी सोचा नहीं था कि मैं दीनदयाल जी की प्रतिमा का अनावरण करूंगा। यह नहीं सोचा था। दीनदयाल जी के बारे में, उनकी क्या सोच है, इसमें डॉक्टर महेश शर्मा जी मेरे अध्यापक रहे हैं, पर यह नहीं सोचा था कि मुझे यह गौरव प्राप्त होगा, और वह भी सीकर की भूमि पर, और वह भी उनके अवतरण दिवस पर। मैं अपने आप को बहुत भाग्यशाली मानता हूं और मेरा स्पष्ट मानना है कि जो स्थान वहां है, ज्ञान स्थल। तो मुझे दो बातें याद आ गई, जरूर मैंने पिछले जन्म में कोई पुण्य किए होंगे कि ज्ञान स्थल में दीनदयाल जी की मूर्ति का अनावरण उनके 108वें अवतरण दिवस पर मेरे हाथों से हो।
जो नई संसद भवन है, उसमें जो पहले प्रतिमाएं लगी हुई थीं महानुभावों की, उनको हमने एक जगह रखा और उसको नाम दिया प्रेरणा स्थल। उसका उद्घाटन भी मैंने किया, और दो महानुभाव मेरे सामने हैं आज के दिन, दोनों का जन्मदिन है – पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का भी है और चौधरी देवीलाल जी का भी है। दोनों अपनी दृष्टि से तपस्वी थे। दोनों ने ही समाज को कुछ देने को ही हमेशा सोचा। चौधरी देवीलाल जी यहां से सांसद रहे हैं, भारत के उपप्रधानमंत्री रहे हैं। जब प्रेरणा स्थल में उनकी मूर्ति के पास मैं गया, तो मुझे अनुभूति हुई कि उन्होंने मुझे राजनीतिक क्षेत्र में उतारा, वह पल मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा। और यह संयोग है कि मेरा भी असली जन्मदिन 25 सितंबर ही है।
जो नई संसद भवन है, उसमें जो पहले प्रतिमाएं लगी हुई थीं महानुभावों की, उनको हमने एक जगह रखा और उसको नाम दिया प्रेरणा स्थल। उसका उद्घाटन भी मैंने किया, और दो महानुभाव मेरे सामने हैं आज के दिन, दोनों का जन्मदिन है – पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का भी है और चौधरी देवीलाल जी का भी है। दोनों अपनी दृष्टि से तपस्वी थे। दोनों ने ही समाज को कुछ देने को ही हमेशा सोचा। चौधरी देवीलाल जी यहां से सांसद रहे हैं, भारत के उपप्रधानमंत्री रहे हैं। जब प्रेरणा स्थल में उनकी मूर्ति के पास मैं गया, तो मुझे अनुभूति हुई कि उन्होंने मुझे राजनीतिक क्षेत्र में उतारा, वह पल मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा। और यह संयोग है कि मेरा भी असली जन्मदिन 25 सितंबर ही है।
पंडित जी के बारे में अपने को बहुत सीखने की आवश्यकता है और आज के दिन उनका दर्शन, उनकी सोच कितनी प्रासंगिक है, इसका आप अंदाजा नहीं लगा सकते। उनके दर्शन और विचार ऐसे रहे, और महेश जी की कृपा रही कि मेरे जीवन को प्रभावित किया है। जब एक गोष्ठि में मैं गया, तो मेरे पास ऐसी योग्यता नहीं थी कि उस स्थान पर मैं दीनदयाल जी के दर्शन के बारे में कुछ कह पाऊ और एक प्रोफेसर साहब भी आई हुई थीं। हमने देखा कि दीनदयाल जी के बारे में चर्चा बिना अध्ययन के, बिना गहराई के समझे संभव नहीं है। आपने एक वाक्य में सबका समापन कर दिया आपने एक छात्र की तरह बहुत अच्छा भाषण दिया है। आज के दिन यदि आप देखेंगे, तो दीनदयाल जी का अध्ययन करते हुए ध्यान रखना पड़ेगा कि वह कितने दूरदर्शी थे। समय बदल रहा है, तकनीकी आ गई है, सोच बदल गई है, पर वह दूरदर्शी थे। विचारक, दार्शनिक और सामाजिक हितकारी थे। क्यों? उनका केंद्र व्यक्ति विकास पर था, व्यक्ति को बल मिले, व्यक्ति समाज का एक ऐसा अंग बने कि वह सकारात्मक रूप से अपना सहयोग दे पाए समाज को।
और यह सोच आज भारत की राजनीति को प्रभावित कर रही है। आज के दिन, यदि आप देखोगे, भारत की जो विकास यात्रा है, जिसको हम कह सकते हैं, हर घर शौचालय, हर घर नल, हर घर बिजली, आदमी को मकान मिले पक्का, उसके हाथ को काम मिले, उसको शिक्षा मिले, उसको वह सब सुविधाएं प्राप्त हों जो हर किसी को प्राप्त हैं। इसी को तो कहते हैं अंत्योदय। आखिरी आदमी की चिंता करने का अर्थ है कि हम सृष्टि की चिंता कर रहे हैं, हम पूरे पृथ्वी की चिंता कर रहे हैं। यह सोच बड़ी मुश्किल से आती है क्योंकि जब भी आदमी को अवसर मिलता है, खुद के बारे में सोचता है, खुद के नजदीकी लोगों के बारे में सोचता है, और कुछ हद तक समाज की भी सोच लेता है।
आज हमारी जो पृथ्वी है, और जिस बुरी दशा में आज के दिन हम आज है नहीं होते यदि अगर दीनदयाल जी की सोच, उनके दर्शन को हम समझते। गांधी जी ने बहुत सही कहा था कि “The earth has everything for everyone’s need but not for greed.” पर हम क्या देख रहे हैं? जब भी मौका आता है, हम हमारी आर्थिक ताकत को दिखा देते हैं। We are too quick to show our fiscal muscle. कितना पेट्रोल उपयोग करूंगा, कितनी बिजली उपयोग करूंगा। क्या यह आपकी पॉकेट तय करेगी? आपके धन की जो ताकत है, वह आपको यह अधिकार नहीं देती कि आप इनका उपयोग चाहे जैसे करें। We have to develop a culture of optimal utilisation of natural resources. यह हमारी सोच में होना चाहिए।
मैं आपके समक्ष आज कहना चाहता हूं, दीनदयाल जी का अध्ययन कीजिए, उनके आदर्शों को समझिए, उनकी सोच को समझिए, उनके दर्शन को समझिए और कोशिश कीजिए कि आप उनका अनुपालन कर पाएं। दूसरा, राष्ट्रहित और देश सेवा को निजी और राजनीतिक स्वार्थ से ऊपर रखें। ऐसी कोई परिस्थिति नहीं है कि हम राष्ट्रहित को हमारे निजी स्वार्थ और राजनीतिक स्वार्थ से काम आंके। जो ऐसा करते हैं, वह गलतफहमी में हैं उनकी सराहना कभी नहीं करनी चाहिए चाहे देश में या चाहे बाहर कोई भी, जो हमारे राष्ट्रीय हित को नुकसान पहुंचाता है, वह हमारा हितैषी नहीं है।
देश की आजादी को हमें समझना पड़ेगा। यह आजादी हमें बहुत मुश्किल से मिली है और इसीलिए मैं कहूंगा खास तौर से नवयुवकों से आपातकाल का कालखंड कभी मत भूलिए और इसी को दृष्टिगत रखते हुए संविधान दिवस मनाया जाता है। अब 26 नवंबर को उसकी गरिमा समझिए, उसकी अहमियत समझिए। Emergency के दौरान हमारे साथ क्या हुआ, कितना बड़ा खिलवाड़ हुआ, देश कहां से कहां चला गया, कितने अंधकार में चला गया। कैसे लोग जेलों में चले गए। आजादी को 18 साल नहीं हुए थे और एक व्यक्ति ने अपनी इच्छा पूर्ति के लिए, अपने पद को बचाने के लिए लाखों लोगों के अधिकारों को एक तरह से कूड़ेदान में पटक दिया। देश की कोई संस्था नहीं आई बचाने के लिए। आपको याद रखना चाहिए क्योंकि नवयुवकों को अंदाजा नहीं है कि उस समय क्या हुआ था।
और इसी तरीके से एक और दिवस की चर्चा की गई है जो इस साल की गई है – संविधान हत्या दिवस, 25 जून को यह मनाया जाता है। सोचना पड़ेगा कि भारत जैसे प्रजातंत्र में हजारों साल की संस्कृति और विरासत का धनी भारत कैसे एक व्यक्ति के सामने नतमस्तक हो गया कि कोई भी रक्षा के लिए नहीं आया। यह आपको देखना पड़ेगा। मेरा विशेष अनुरोध है।
और इसी तरीके से एक और दिवस की चर्चा की गई है जो इस साल की गई है – संविधान हत्या दिवस, 25 जून को यह मनाया जाता है। सोचना पड़ेगा कि भारत जैसे प्रजातंत्र में हजारों साल की संस्कृति और विरासत का धनी भारत कैसे एक व्यक्ति के सामने नतमस्तक हो गया कि कोई भी रक्षा के लिए नहीं आया। यह आपको देखना पड़ेगा। मेरा विशेष अनुरोध है।
मैं छात्रों से यह कहना चाहूंगा, खास तौर से – Never fear failure, failure is natural to any work. यदि चंद्रयान-2 पूरा सफल होता तो चंद्रयान-3 की आवश्यकता नहीं थी। और क्योंकि चंद्रयान-2 बहुत हद तक सफल हुआ, कुछ लोगों ने उसको फेलियर कहा। वह फेलियर नहीं था। कोई भी फेलियर आंशिक सफलता है। कोई भी फेलियर सफलता की सीढ़ी है। And therefore, never fear failure.
आप चारों तरफ देखेंगे, तो एक होड़ लगी हुई है, कोचिंग सेंटर में जा रहे हैं, लगता है सरकारी नौकरी के अलावा हमारे पास कोई रास्ता नहीं है। I appeal to young minds, be fully aware, your opportunity basket is increasing. आपका opportunity बास्केट बहुत बड़ा है। यदि IMF कहता है कि आज भारत is favourite destination of investment and opportunity, तो वह सरकारी नौकरी की वजह से नहीं कह रहा है। opportunities आप खुले दिमाग से देखिए, आपको अपनी प्रतिभा चमकाने का बहुत अच्छा मौका मिलेगा।
नवयुवकों के लिए दो चीजें बहुत महत्वपूर्ण हो गई हैं। पहले कानून के सामने सब बराबर नहीं थे। We had a privilege pedigree. कुछ लोग कानून से ऊपर थे। कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता था, ऐसी धारणा बन गई थी। वह धारणा धराशाई हो गई है। यह नवयुवकों के लिए बहुत बड़े फायदे है। दूसरा, पहले बिना भ्रष्टाचार के कोई काम नहीं होता था। बिचौलिया बीच में आता था। Now power corridors have been fully sanitized. बिचौलिये गायब हो गए हैं। इसमें तकनीकी ने बहुत बड़ा सहयोग दिया है।
आज के दिन जिस भारत को हम देख रहे हैं, जिस भारत के प्रति दुनिया नतमस्तक है, जो भारत विकसित भारत की ओर तीव्र गति से अग्रसर है। चारो तरफ हम देखते है जल, थल, आकाश और अंतरिक्ष हमारी प्रगति अप्रत्याशित और अकल्पनीय है, सोच के परे है।
मैंने वह जमाना देखा है, जब मुझे खुद को डर लगता था, 1989 में जब मैं पहली बार लोकसभा का सदस्य बना, केंद्र में मंत्री बना हमारी अर्थव्यवस्था लंदन शहर से छोटी थी, आज आने वाले दो साल में हम जापान और जर्मनी से आगे जाकर दुनिया की तीसरी महाशक्ति बनने जा रहे हैं। ऐसा हमारा देश है। अब यह देश रुकने वाला नहीं है, पर कुछ लोग बाधा उत्पन्न करना चाहते हैं, आप चुप मत रहिए।
मैंने वह जमाना देखा है, जब मुझे खुद को डर लगता था, 1989 में जब मैं पहली बार लोकसभा का सदस्य बना, केंद्र में मंत्री बना हमारी अर्थव्यवस्था लंदन शहर से छोटी थी, आज आने वाले दो साल में हम जापान और जर्मनी से आगे जाकर दुनिया की तीसरी महाशक्ति बनने जा रहे हैं। ऐसा हमारा देश है। अब यह देश रुकने वाला नहीं है, पर कुछ लोग बाधा उत्पन्न करना चाहते हैं, आप चुप मत रहिए।
राष्ट्रवाद को ध्यान रखते हुए हर हालत में इस बात का ध्यान दीजिए कि हम राष्ट्र के प्रति पूरी तरह समर्पित हैं। हम भारतीय हैं, भारतीयता हमारी पहचान है, राष्ट्रधर्म हमारा सबसे बड़ा धर्म है। मुझ यहाँ आकर बहुत प्रसन्नता हुई है।

बहुत-बहुत धन्यवाद, नमस्कार।