कोई वैस्य समाज,
तो ब्राह्मण,जैन,
कोई माहेश्वरी,
तो कोई सुनार समाज,
कितना अदभुद सब समाज का एक संगम हमारा है ,
कितना सुन्दर “मारवाड़ी समाज” हमारा है,
ये “कटक मारवाड़ी समाज” हमारा है..

यहां हर किसी का व्यापार अलग है,
भाषा अलग,विचार अलग,
पर्व अलग,त्यौंहार अलग
फिर सबका स्वाद निराला है,
कितना सुंदर “मारवाड़ी समाज” हमारा है,
ये “कटक मारवाड़ी समाज” हमारा है..
कोई आता कहां से,
कोई जाता कहां पे,
कोई रहता इस छोर,
तो कोई रहता उस छोर,
फिर भी सबकी अपनी-अपनी विचार धारा है,
कितना सुन्दर “मारवाड़ी समाज” हमारा है,
ये “कटक मारवाड़ी समाज” हमारा है..
कोई है नदी के इस ओर,
तो कोई है नदी के उस ओर,
कोई है “काठजोडी” की लहरों के किनारों पे,
तो कोई है “महानदी” की धारों पे,
चारों ओर नदियों के बीच बसा “कटक नगर” हमारा है,
कितना सुंदर “मारवाड़ी समाज ” हमारा है,
ये “कटक मारवाड़ी समाज” हमारा है..
सबकी हैं सोच अपनी,
सबका हैं व्यापार अपना,
सबकी है समाज में ताकत अपनी,
सबके भाव अपने,सबकी अपनी अलग विचारधारा है,
फिर भी कितना सुंदर भाईचारा है,
कितना सुंदर “मारवाड़ी समाज ” हमारा है,
ये “कटक मारवाड़ी समाज” हमारा है,
इस ओर बहती “काठजोड़ी” नदी,
तो उस छोर “महानदी” की निश्चल धारा है,
जहां विराजे “गड़ गडेश्वर महादेव,”
वहां “मां कटक चंडी” का दरबार सजा न्यारा है,
जहां है “महाकाली” का मोक्ष शक्ति पीठ,
वहां पर “पंचमुखी हनुमान” हमारा है,
ऐसा सुंदर सबसे प्यारा “कटक नगर” हमारा है,
ये “कटक मारवाड़ी समाज” हमारा है..
ये “कटक मारवाड़ी समाज” हमारा है…
सधन्यवाद
(प्रदीप शर्मा)