इंजीनियर श्याम सुन्दर पोद्दार

महामंत्री,वीर सावरकर फाउंडेशन।
नाथूराम गोडसे ने गाँधी का वध किया था। नाथूराम गोडसे बड़ा ही अभागा आदमी था उसने किस लिये गाँधी की हत्या की,३० लम्बे वर्ष तक उसका न्यायालय में दिया स्टेटमेंट प्रतिबंधित रहा। भारत के लोग जान भी नहीं पाये उसने गाँधी को किस लिये मारा था। पाठ्यपुस्तकों में भी नाथूराम गोडसे को महत्व पूर्ण स्थान मिला। पुस्तकों में सरकार पढ़ाती है कि नाथूराम गोडसे हिन्दुत्ववादी था जिसने महात्मा गाँधी के हिन्दू मुस्लिम एकता के काम को समाप्त करने के लिए महात्मा गांधी को जान से मार डाला। कभी किसी भी व्यक्ति ने नाथूराम गोडसे का भूल से भी नाम लेलिया उसपर चारों तरफ़ से हमला होने लगता है। एक भाजपा की नव निर्वाचित साध्वी सांसद ने गोडसे का नाम अच्छे से क्या लिया,चारो तरफ़ से उस सांसद साध्वी पर हमला होने लगा,यह लगा जैसे उसने गाँधी की स्वयं हत्या की हो। प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी उनसे इतने भयभीत हुवे,सभी नव निर्वाचित सांसदों से हाथ मिला रहे थे।उनसे हाथ मिलाना तो दूर,उनकी तरफ़ देखा तक नहीं और अब उनका टिकट भी काट दिया। गोडसे के साथ यह ब्यवहार इसलिए किया जा रहा है,गोडसे ने गाँधी को क्यों मारा,लोग जान भी नहीं पाये। गोडसे को बदनाम करने के लिये नेहरू ने उन पर अभियोग लगाने वाले जब लाल क़िले की विशेष अदालत में क्या कह रहे है उसको सारे भारत के सैकड़ा पत्रकार लाल क़िले में उपस्थित होते थे।सरकार द्वारा पचासों स्पीकर पर सुनाने की ब्यवस्था थी। सारे भारत में पत्रकारों को उनके बिरुद्ध लगाये अभियोग व झूठी बाते आम जनता तक पहुँचा दी। नाथूराम गोडसे इंतज़ार करते थे,मैं भी अपना पक्ष जब न्यायाधीश के सामने रखूँगा मेरी सच्चाई जनता इसी प्रकार जान पायेगी मैंने गाँधी को क्यों मारा। पर नेहरू ने जब बचाव पक्ष का समय आया,लाल क़िले से प्रेस के लिये माइक की ब्यवस्था ख़त्म कर दी। यदि भूल से कुछ पत्रकार लाल क़िले के अन्दर जाकर उनके पक्ष को सुना और नोट लिखा। नेहरू ने पुलिस के उच्च अधिकारी भेज दिये,जिन्होंने उनके हाथ से लिखे नोट को छीन लिया व फाड़ दिया तथा पत्रकारों को पुलिस ने सख़्त धमकी दी,यदि एक शब्द भी समाचार पत्र में लिखा तो पुलिस की कार्यवाही के लिये तैयार रहे। इस डर से किसी ने गोडसे के पक्ष का एक शब्द भी नहीं लिखा। नाथूराम गोडसे ने जो लिखित पक्ष कोर्ट में जमा किया। नेहरू सरकार ने उस पर प्रतिबंध लगा दिया। जो उनको फाँसी दिये जाने के ३० वर्ष बाद उनके भाई गोपाल गोडसे ने न्यायालय के आदेश से प्रतिबंध उठाया। इसलिए लोग आज तक जान नहीं पाये नाथूराम गोडसे ने गाँधी का वध क्यों किया। गोडसे ने अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयं सेवक से आरम्भ किया था,बाद में वे हिन्दू महासभा से प्रभावित होकर हिन्दू महासभा के कार्यकर्ता बन गये। कुछ समय पश्चात उन्होंने मराठी दैनिक “अग्रणी” समाचार पत्र निकाला व उसका सम्पादन किया।नेहरू सरकार ने प्रेस सेंसरशिप एक्ट लागू कर रखा था कि पाकिस्तान में हिंदुओं के संघार की कोई घटना भारत के समाचारपत्र प्रकाशित नहीं करे। यदि किया तो उनको आर्थिक पेनल्टी लगा कर दण्डित किया जायेगा। नाथूराम गोडसे के समाचार पत्र अग्रणी में उन्होंने पाकिस्तान में हिंदुवो पर होने वाले अत्याचार को प्रकाशित किया। महाराष्ट्र के गृहमंत्री मोरारजी देसाई ने उनके समाचार पत्र पर ज़बरदस्त पेनल्टी लगा दी। इस पेनल्टी के बिरुद्ध शिकायत करने वे गृहमंत्री सरदार पटेल से मिलने दिल्ली आये थे। इसी बीच गाँधी जी की ५५ करोड़ पाकिस्तान को दिलवाने के लिये अनशन की समाप्ति पर गाँधी जी की ७ वी माँग दिल्ली की मस्जिदों में पाकिस्तान से आये शरणार्थी रह रहे है,उन सभी मस्जिदों को शरणार्थियों से ख़ाली कराई जाय। गाँधी जी के अनशन की इस माँग को पूरा करने के लिये दिल्ली में जनवरी की भीषण ठण्ड में बर्षा हो रही थी,पुलिस वाले मस्जिदों से हिन्दू शरणार्थियों को फेंक फेंक कर निकाल रहे थे। नेहरू सरकार ने इनके रहने की कोई ब्यवस्था नहीं की। कुछ हिंदू शरणार्थी परिवार गाँधी से माँग करने की उनके रहने की ब्यवस्था करे,बिरला हाउस पहुँचे। वहाँ से उनको हटा दिया गया। नाथूराम गोडसे इस घटना के प्रत्यक्ष दर्शी थे उनका हृदय इस घटना से चीत्कार उठा।नाथूराम गोडसे गाँधी की भारत विभाजन नीति का पहले से ही विरोधी था। उसने मन ही मन कहा आज हिन्दू शरणार्थियों की यह दुर्दशा गाँधी के चलते है व उनको जान से मारने का निर्णय लिया। ताकि गांधी की मुस्लिम तुष्टिकरण नीति समाप्त हो व हिन्दू जाति का और अनर्थ न हो। वे जानते थे यदि उन्होंने गांधी का वध किया,तो उनको फाँसी मिलेगी। हिंदू जाति के स्वार्थ में यह क़ुर्बानी देने के लिये तैयार हुवे व मर मिटे। नाथूराम गोडसे ने १०१ रुपया सोमनाथ मन्दिर के निर्माण में दिया। उनके माता पिता को नेहरू सरकार ने उनसे मिलने नहीं दिया। कितना अन्याय नहीं किया। ६ महीने का समय मिलता है ऊँची अदालत में निर्णय को चुनौती देने में पर उन्हें सिर्फ़ १५ दिन दिये गये। नाथूराम गोडसे एक समाचार पत्र का संपादक था। हिन्दू महासभा का कार्यकर्ता होना क्या पाप है। न्यायालय में उनके दिये वक्तव्य पर न्यायाधीश महोदय की टिप्पणी है,न्यायालय में उपस्थित सभी लोगो की आंखो आंसू थे। जब न्यायालय में उपस्थित लोगो की यह अवस्था थी,तो पूरे भारत के लोग उनकी बातो की गाँधी वध क्यों किया जान पाते नाथूराम गोडसे राष्ट्र के हीरो होते।