प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार ने भारत में नवाचार आकलन को मानकीकृत करने के लिए “राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी तत्परता मूल्यांकन प्रारूप (एनटीआरएएफ)” का अनावरण किया

भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (पीएसए), प्रोफेसर अजय कुमार सूद ने 29 दिसंबर 2025 को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी तत्परता मूल्यांकन प्रारूप (एनटीआरएएफ) का अनावरण किया। शुभारंभ कार्यक्रम में डॉ. परविंदर मैनी, वैज्ञानिक सचिव, पीएसए कार्यालय (ओपीएसए); और डॉ. शिवकुमार कल्याणरामन, सीईओ, अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (एएनआरएफ), डॉ. प्रीति बंजाल, सलाहकार/वैज्ञानिक ‘जी’, ओपीएसए; श्री प्रवीण रॉय, प्रमुख टीटी, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी); डॉ. ज्योति शर्मा, प्रमुख आरडीआई, डीएसटी; श्री रोहित गुप्ता, प्रमुख तकनीकी अधिकारी (सीटीओ), ओपीएसए तथा ओपीएसए और भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के अन्य अधिकारियों ने भाग लिया। सीआईआई के सहयोग से विकसित यह प्रारूप प्रौद्योगिकी परियोजनाओं की परिपक्वता को प्रयोगशाला अवधारणा से लेकर व्यावसायिक तैनाती तक मापने के लिए एक एकीकृत, वस्तुनिष्ठ मानक स्थापित करता है। यह प्रारूप 31 जनवरी 2026 तक सार्वजनिक परामर्श के लिए खुला है।

इस प्रारूप का उद्देश्य राष्ट्रीय मिशनों के तहत शुरू किए गए विभिन्न आर एंड डी कोषों के लिए एक परिचालन आधार के रूप में कार्य करना है। 9 तकनीकी तत्परता स्तरों (टीआरएल) में परियोजनाओं का मूल्यांकन करने के लिए एक सुसंगत पद्धति प्रदान करके – जिसमें अवधारणा का प्रमाण (टीआरएल 1-3) से लेकर प्रोटोटाइप विकास (टीआरएल 4-6) और परिचालन परिनियोजन (टीआरएल 7-9) शामिल हैं – यह प्रारूप वित्तपोषण करने वाली एजेंसियों को संसाधनों को अधिक सटीकता के साथ आवंटित करने और निजी निवेश के लिए प्रारंभिक चरण की तकनीकों के जोखिम को कम करने में सक्षम बनाएगा।

शुभारंभ कार्यक्रम के दौरान अपने संबोधन में प्रोफेसर सूद ने शोधकर्ताओं और निवेशकों के बीच एक सामान्य भाषा की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “बहुत लंबे समय तक, भारतीय डीपटेक इकोसिस्टम एक अप्रत्याशित स्थिति का सामना करती रही है, जहां अकादमिक जगत और उद्योग जगत तकनीकी तत्परता के बारे में अलग-अलग भाषा बोलते हैं। यह असंगति अक्सर टीआरएल 4 और टीआरएल 7 के बीच ‘मृत्यु की घाटी (वैली ऑफ डेथ’) पैदा करती है, जहां अनुमानित जोखिमों के कारण वित्तपोषण बंद हो जाता है। एनटीआरएएफ हमें विषयनिष्ठ आख्यानों से वस्तुनिष्ठ साक्ष्य की ओर ले जाता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि हम केवल वैज्ञानिक प्रयोगों को ही नहीं, बल्कि हासिल करने योग्य, बाजार-तैयार समाधानों को भी वित्तपोषित कर रहे हैं।“

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डॉ. मैनी ने दस्तावेज़ का वर्णन वैज्ञानिक समुदाय के लिए ‘निश्चित मार्गदर्शिका’ के रूप में किया। उन्होंने कहा, “प्रौद्योगिकी परिपक्वता के लिए एक सामान्य भाषा स्थापित करके, हमारा लक्ष्य शोधकर्ता के तत्परता दावे और निवेशक या मूल्यांकनकर्ता की प्रमाण की आवश्यकता के बीच अक्सर-विषयनिष्ठ अंतर को कम करना है।”

डॉ. कल्याणरमन ने जोर दिया कि प्रौद्योगिकी तत्परता बाजार सत्यापन के समानांतर चलनी चाहिए, विशेष रूप से टीआरएल 4 से आगे। उन्होंने एक पायलट चरण का सुझाव भी दिया, जहाँ 20 चयनित तकनीकों को व्यापक रूप से अपनाने से पहले प्रारूप में बदलाव और दबाव-जांच करने के लिए एनआरडीसी द्वारा प्रति-सत्यापित किया जा सकता है।

डीएसटी के श्री रॉय और डॉ. शर्मा ने इस प्रारूप का स्वागत ‘समय पर हस्तक्षेप’ के रूप में किया, जो आरडीआई कोष के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि उच्च-जोखिम, उच्च-लाभ वाली परियोजनाओं का मूल्यांकन करने में इसके द्वारा पेश की गयी संरचनात्मक कठोरता; उपकरण को परिष्कृत करने और इसे भारत के गतिशील नवाचार परिदृश्य के अनुरूप विकसित करने में मदद करेगी।

डॉ. राहुल कटना, सलाहकार – प्रौद्योगिकी, नवाचार और अनुसंधान एवं विकास, सीआईआई, ने इस उपकरण को आकार देने में उद्योग की भूमिका पर जोर दिया और उल्लेख किया कि इसके कड़े मानक सुनिश्चित करते हैं कि कोई भी स्टार्टअप जो ‘तैनाती के लिए तैयार’ होने का दावा करता है, वह वास्तविक रूप से औद्योगिक-स्तर की मान्यता प्राप्त करने में सक्षम है।

श्री गुप्ता ने इस बात पर जोर दिया कि एनटीआरएएफ एकीकृत पैमाना स्थापित करके तकनीकी हस्तांतरण में होने वाली अस्पष्टता को दूर करता है, जो शोध प्रयोगशालाओं, उद्योग और सरकार का तत्परता की मान्य, निर्माण योग्य परिभाषा को लेकर समन्वय करता है।

प्रारूप की प्रमुख विशेषताओं में शामिल हैं:

  • वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँभारतीय संदर्भ: वैश्विक मानकों (जैसे नासा) से अनुकूलित लेकिन भारतीय अनुसंधान और विकास इकोसिस्टम की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप।
  • विषयनिष्ठता के बदले वस्तुनिष्ठता: विकास के प्रत्येक चरण के लिए गुणात्मक अनुमान के स्थान पर संरचित, साक्ष्य-आधारित चेकलिस्ट प्रदान करता है।
  • क्षेत्र-विशेष जटिलताएँ: स्वास्थ्य सेवा और फार्मास्यूटिकल्स तथा सॉफ्टवेयर जैसे विशिष्ट क्षेत्रों के लिए विशेष परिशिष्ट शामिल हैं, यह स्वीकार करते हुए कि विभिन्न क्षेत्रों के विकास मार्ग अलग होते हैं।
  • स्व-मूल्यांकन उपकरण: परियोजना, अन्वेषकों को अपनी स्थिति का वास्तविक रूप से आकलन करने और निधि प्राप्त करने से पहले तकनीकी अंतर की पहचान करने में सक्षम बनाती है।

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