नालसार विश्वविद्यालय और भारतीय कंपनी सचिव संस्थान (आईसीएसआई) ने हैदराबाद में संयुक्त रूप से राष्ट्रीय सम्मेलन कॉर्प-कॉन 2025 आयोजित किया

नालसार विश्वविद्यालय और भारतीय कंपनी सचिव संस्थान (आईसीएसआई) ने 12 सितम्‍बर 2025 को हैदराबाद में संयुक्त रूप से एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया। भारतीय कॉर्पोरेट कार्य संस्थान के महानिदेशक और सीईओ ज्ञानेश्वर कुमार सिंह को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था।

कॉर्प-कॉन 2025 का उद्घाटन सत्र, जिसका विषय पर्यावरण, समाज और शासन (ईएसजी) और दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) था, नालसार के कुलपति प्रोफेसर श्रीकृष्ण देव राव की अध्यक्षता में सार्क लॉ हॉल में आयोजित हुआ।

अपने संबोधन में, ज्ञानेश्वर कुमार सिंह ने कॉर्पोरेट कानून में ईएसजी से जोड़ने, हितधारक सिद्धांत की प्रासंगिकता, आईबीसी की मध्यस्थता भूमिका और आगामी आईबीसी 3.0 संशोधनों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने सभी हितधारकों के बीच विश्वास निर्माण और सामूहिक उत्तरदायित्व को बढ़ावा देने के महत्व पर बल दिया।

सभा की शुरुआत गणमान्य व्यक्तियों और प्रतिनिधियों के हार्दिक स्वागत, औपचारिक दीप प्रज्ज्वलन और आईसीएसआई के आदर्श वाक्य “सत्यम वद, धर्म चर” के गायन के साथ हुई।

अपने उद्घाटन भाषण में, कुलपति ने आत्मनिर्भरता, पर्यावरणीय स्थिरता और ईएसजी सिद्धांतों के अनुप्रयोग के महत्व पर ज़ोर दिया, और एम.सी. मेहता (1985) और टी.एन. गोदावर्मन जैसे ऐतिहासिक मामलों का हवाला दिया। उन्होंने ईएसजी और आईबीएल अध्ययनों को आगे बढ़ाने में नालसार-आईसीएसआई सहयोग के महत्व पर भी प्रकाश डाला और बताया कि सम्मेलन के चुनिंदा शोधपत्र प्रकाशित किए जाएँगे।

सत्र में प्रतिष्ठित वक्ताओं के विचारोत्तेजक भाषणों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मुख्य सचिव पी. एस. राव ने अधिग्रहण, विलय, दिवालियापन और पुनर्गठन के अपने अनुभवों पर प्रकाश डाला और कॉर्पोरेट प्रशासन में ईएसजी के विकास और व्यावहारिक चुनौतियों पर जानकारी प्रदान की।

इंद्रजीत शॉ ने दैनिक जीवन में स्थिरता को शामिल करने, ईएसजी पाठ्यक्रम, हितधारक जुड़ाव पर ज़ोर दिया और टाटा, इंफोसिस और महिन्‍द्रा जैसी कंपनियों की सर्वोत्तम कार्य प्रणालियों को साझा किया। मुख्य सचिव रंजीत पांडे ने ईएसजी को एक विकल्प के बजाय एक आवश्यकता के रूप में प्रस्तुत किया, इसे सीएसआर से स्पष्ट रूप से अलग करते हुए, और सहायक संस्थागत और कानूनी ढाँचों पर चर्चा की।

सत्र का समापन स्मृति चिन्हों की प्रस्तुति और प्रोफेसर पी. श्रीनिवास सुब्बा राव द्वारा औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ, जिन्होंने प्रतिभागियों, आयोजकों और सहयोगियों के योगदान को स्वीकार किया।

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