
आज भारतवर्ष ही नहीं पूरा विश्व जानता है कि पं. नाथूराम गोडसे एक सच्चे देशभक्त थे। पूरे विश्व में गांधी वध के कारण नाथूराम गोडसे अमर हो गए। वे हिंदू महासभा के सक्रिय कार्यकर्ता थे। सुभाष चंद्र बोस से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने सुभाष चंद्र बोस की पार्टी फॉरवर्ड ब्लॉक से प्रभावित हो कर ‘अग्रणी’ नामक समाचार पत्र निकाला। संपादन भी स्वयं किया। हैदराबाद के निजाम द्वारा हिंदू जनता पर अत्याचार के विरुद्ध जब वीर सावरकर ने हैदराबाद आंदोलन चलाया तब नाथू राम गोडसे आंदोलन के अग्रणी श्रेणी के नेता के रूप में उभरे। निजाम की जेल में बंदी भी रहे।

नेहरू सरकार ने समाचार पत्रों पर प्रेस सेंसरशिप लगा रखी थी। भारत का कोई भी समाचार पत्र पाकिस्तान में होने वाली हिंदू हत्याओं पर कुछ नहीं लिख सकता था। सरकार जबरदस्त आर्थिक पेनाल्टी लगाती थी। नाथूराम गोडसे अपने ‘अग्रणी’ समाचार पत्र में पाकिस्तान में हो रहे हिंदू नरसंहार की जानकारी प्रकाशित करने लगे थे। बंबई के गृहमंत्री मोरारजी देसाई ने अग्रणी पर बहुत बड़ी आर्थिक पेनाल्टी लगा दी। गोडसे अग्रणी पर हुये इस अत्याचार की जानकारी देने दिल्ली में गृहमंत्री सरदार पटेल से मिलने गए। गांधी को मारने नहीं।
गांधी ने अनशन कर पाकिस्तान को ५५ करोड़ दिलवाया। उनकी यह भी माँग थी कि पाकिस्तान से उजड़कर जो हिन्दु शरणार्थी आकर दिल्ली की मस्जिदों व मुसलमानों के खाली पड़े घरों में रह रहे है,वे उन सभी स्थानों को तुरंत खाली कर दें। जनवरी का महीना था। दिल्ली में भीषण ठंड व बारिश भी हो रही थी। नेहरू की पुलिस इन हिंदू शरणार्थियों को मस्जिदों व खाली पड़े मुस्लिम घरों से खींच-खींच कर रास्ते में फेक रही थी। नाथूराम गोडसे दिल्ली में थे। उनका हृदय यह सब देखकर फट पड़ा।
उन्होंने कहा कि सरकार को पहले इनके रहने की दूसरी व्यवस्था करनी थी। फिर निकालना था। क्या ये दोषी है ? इनकी इस दुर्गति के लिए गांधी जिम्मेवार है। क्या इन लोगों को जीने का अधिकार नहीं है। यह सारे लोग पाकिस्तान से उजड़ कर आए हैं। गोडसे मदन लाल पाहवा के साथ गांधी को मारने वाले समुह में सामिल हो गये। २० जनवरी को मदन लाल पाहवा ने अपने साथियों के साथ बिरला भवन में प्रवेश किया। गांधी पर बम से हमला किया। गांधी बच गए। मदन लाल पाहवा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उसने अपने साथियो के नाम पुलिस को बता दिये। पर नेहरू की पुलिस ने किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया। न गांधी की सुरक्षा ही बढ़ायी। इस कारण नाथूराम गोडसे को आसानी से गांधी को मारने का अवसर मिल गया। नाथूराम गोडसे हिंदू महासभा के कार्यकर्ता थे। हिंदू महासभा को बदनाम करने के लिए नाथूराम गोडसे पर जब अभियोग लगाए जा रहे थे, तब सारे भारत की प्रेस को लाल किले में पचासो माइक से सुनने की आज़ादी थी। पर जब नाथूराम गोडसे के बचाव में बोलने का समय आया तो प्रेस वालों का लाल किले में प्रवेश वर्जित कर दिया गया। नेहरू ने भारत की जनता को गोडसे का पक्ष जानने का अवसर ही नहीं दिया। गोडसे ने न्यायालय में लिखित में अपना पक्ष रखा। नेहरू ने उस पर भी प्रतिबंध लगा दिया।
सरकारी पुस्तकों में बच्चों को झूठ पढ़ाया गया कि नेहरू व गांधी हिंदू मुस्लिम एकता का काम कर रहे थे। इसलिए हिंदू कट्टर पंथी नाथूराम गोडसे ने गांधी को मार डाला।
नेहरू ने गोडसे के माता-पिता को गोडसे से मिलने तक नहीं दिया। ब्रिटिश सरकार ने भगत सिंह की माता और परिवार वालॉ को भगत सिंह से मिलने दिया था। पर नेहरू ने गोडसे के माता पिता को उनसे मिलने तक नहीं दिया। उच्च अदालत में अपील करने के लिए ६ महीना मिलता था, वह भी मात्र १५ ही दिन दिया गया। इस प्रकार नाथूराम गोडसे के साथ तनिक भी न्याय नहीं हुआ।
