गाँधी हत्याकाण्ड में नेहरू का हाथ

इंजीनियर श्याम सुन्दर पोद्दार

महामंत्री,वीर सावरकर फाउंडेशन

गाँधी हत्या से सम्बन्धित सभी तथ्य आज जब जनता के सामने आ गये है।उनके आधार पर आराम से कहा जा सकता है,गाँधी हत्या काण्ड में नेहरू का हाथ ही नहीं था, पूरी की पूरी पटकथा का लेखक नेहरू था व गाँधी हत्या होने से सबसे अधिक राजनैतिक लाभ नेहरू ने लिया। यह बात सर्व विदित है प्रधानमंत्री पद के चलते नेहरू सरदार पटेल के मंत्रालय में बहुत दखल देते थे। बात यहाँ तक पहुँच गई सरदार पटेल मंत्रिमंडल से पदत्याग करने को तैयार हो गये। गाँधी जी की दखल से पटेल ने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र नहीं दिया। हमारे देश का जब हिंदुस्तान पाकिस्तान में विभाजन हुवा। भारत की ३० प्रतिशत ज़मीन के साथ साथ भारत सरकार की सम्पति का २३ प्रतिशत भाग व भारतीय रिज़र्व बैंक से ७५ करोड़ रुपया पाकिस्तान को मिलना तय हुवा। भारत सरकार ने १५ अगस्त १९४७ के दिन पाकिस्तान सरकार को २० करोड़ रुपया दे भी दिया। जिन्ना ने भारत पाकिस्तान में हिन्दू मुस्लिम जनसंख्या की अदला बदली की माँग रखी थी। जिसे डॉ. अम्बेडकर को केंद्रीय मंत्रिमंडल में बुला कर जगह देने से लगता है गाँधी ने ज़िन्ना की यह माँग मान ली थी। क्योंकि डॉ.अम्बेडकर भारत पाकिस्तान में हिन्दू मुस्लिम जनसंख्या के मुखर वक्ता थे। जब तक काश्मीर का विलय भारत में नहीं हो जाये,गाँधी ने इस विषय् को तब तक के लिये पेंडिंग में रखा।भारत में मुस्लिम रक्तपात नहीं हो,इस लिये १५ अगस्त १९४७ के दिन गाँधी कलकत्ते में शांति स्थापना करते रहे। लोगो को लग रहा था,कलकत्ता भारत में आने से यहाँ के लोग १९४६ के मुस्लिम लीग के ग्रेट कोलकत्ता हिंदू किलिंग का बदला लेंगे। गाँधी कलकत्ते में शांति बनाए रखने में सफल रहे। अक्तूबर १९४७ काश्मीर के भारत में विलय हो जाने के बाद नेहरू ने पाकिस्तान को दिया जाने वाला ५५ करोड़ रुपया रोक दिया। नेहरू जानते थे,कश्मीर के भारत में आ जाने के बाद गाँधी हिंदू मुस्लिम जनसंख्या की अदला बदली करेंगे यदि पाकिस्तान को ५५ करोड़ रुपया नहीं दिया जाय तो गाँधी किस मुँह से जिन्ना से बात करेंगे। गाँधी ने नेहरू सरकार के विरुद्ध अनशन करके नेहरू को मजबूर कर दिया पाकिस्तान को ५५ करोड़ रुपया देने को। पाकिस्तान को ५५ करोड़ रुपया नेहरू सरकार से दिलाने के बाद गाँधी ने अपनी सेक्रेटरी सुशीला नायर को पाकिस्तान जिन्ना के पासभेजा व ४ फ़रवरी १९४८ का समय जिन्ना गाँधी बैठक का समय लेकर सुशीला नायर पाकिस्तान से भारत लौटी। गाँधी की ३० जनवरी १९४८ को हत्या से यह बात आसानी से कही जा सकती है जिस उद्देश्य के लिये पाकिस्तान का ५५ करोड़ रुपया नेहरू ने रोका था उसी उद्देश्य के लिए गाँधी जिन्ना की ४ फ़रवरी १९४८ को बैठक से पहले गाँधी की हत्या करा दी जाती है।
गाँधी जी की हत्या में नेहरू प्रशासन की भूमिका कदम कदम पर प्रमाणित करती है नेहरू की इस हत्या काण्ड में बड़ी भूमिका थी। हरिजन बस्ती में गांधी के हिन्दू मन्दिर में क़ुरान पाठ के बाद गाँधी का जो हिन्दू समाज द्वारा बिरोध आरम्भ हुवा,गाँधी का जीवन हरिजन बस्ती में सुरक्षित नहीं है। नेहरू सरकार गाँधी की सुरक्षा को देखते हुवे बिरला हाउस गाँधी को ले गई। २० जनवरी १९४८ पाकिस्तान में पूरी तरह से बर्बाद हुवे हिन्दू शरणार्थी मदनलाल पाहवा ने अपने कुछ साथियों के साथ बिरला हाउस में जाकर गाँधी पर बम से हमला करने का जान से मारने का असफल प्रयास किया। मदन लाल पाहवा के अन्य साथी तो भागने में सफल हुवे। परन्तु मदन लाल पाहवा पुलिस के हाथ पकड़ा गया।क्या आश्चर्य की बात है मदन लाल पाहवा द्वारा अपने साथियों का नाम पता बताने के बाद भी पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार नहीं किया। इतने बड़े गाँधी पर प्राण लेवे हमले के बाद गाँधी की सुरक्षा कड़ी करनी चाहिए थी। वह सबकुछ भी नेहरू सरकार ने नहीं किया। यदि किया होता तो इतनी आसानी से ३० जनवरी १९४८ मदन लाल पाहवा का साथी गोडसे पुनः अपने साथियों के साथ बिरला हाउस में प्रवेश कर गाँधी की गोली मार कर हत्या नहीं कर पाता। गाँधी को गोडसे ने मात्र दो गोली मारी थी। पर गांधी को लगी चार ये दो गोली और किसने मारी इसी बात को छुपाने के लिये नेहरू ने गाँधी के शव का पोस्ट मार्टम नहीं होने दिया। नेहरू ने अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदी को समाप्त करने में गाँधी हत्या से सफलता प्राप्त की अगले लेख में।

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