कविता- तूफान- यास

एक तो कोरोना से थे परेशान
दूसरा एक और चला आ रहा मेहमान!
जितना भी दूर रहना चाहे
लाख मना करो चाहे!
फिर भी बिन बुलाए
चले आते हैं बेशरम मुँह उठाए!
भाई न चैन से सोने देते ,न खाने देते
लोगों के छान -छप्पर भी उड़ा ले जाते!
बहरूपिया हो मुझको तुम लगते
अजीब- अजीब से नाम हो धरते!
जैसन देश वैसन वेश अपनाते
फनी ताउते और अब यास हो कहलाते!
अर्चना तिवारी