कविता – तूफान

तूफान

जिंदगी ऐसे ही कम परेशान थी क्या?
तू लेकर चला आया और भी परेशानियाँ!
घर में तो हम कैद ही थे जाने कब से,
जाने तू हम नीलांचल वालों के लिए
एक नई परेशानी क्यूँ माँग लाया रब से,
ऐ ‘यास’ क्यों तुझे रास न आया कुछ भी,
जब इस बीमारी का अनुपात थोड़ा घटा,
तूने बिखेर दी है अपनी विकराल छटा।
माना मनुष्यों ने ही की है प्रकृति से छेड़खानी,
उसका सदा दे रहा तू करके अपनी मनमानी!
माना तेरे नाम का मतलब ही तहस नहस है,
अगर तू अपने नाम को सफल ना कर,
तो होगी हम इंसानों पर बहुत मेहरबानी!
वादा करते हैं अब हम सुधर जाएँगे,
प्रकृति के संरक्षण में सपना हाथ आगे बढ़ाएँगे!
रीता झा

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