डेस्क : हाइकु गंगा समूह के उत्कृष्ट पटल पर सुप्रसिद्ध हाइकुकार डाॅ. मिथिलेश दीक्षित दीदी के सान्निध्य में समय-समय पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित होते रहे हैं । इस बार भी समसामयिक चिन्तनीय विषय पर्यावरण पर बहुत सुन्दर रचनात्मक ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजित किया गया । सर्वप्रथम संयोजक डॉ. मिथिलेश दीक्षित जी ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि आज प्रकृति संरक्षण कम , दोहन अधिक हो रहा है । उच्च , चैतन्य और विवेक-बुद्धि से संपन्न मनुष्य इस सृष्टि का सर्वोच्च प्राणी है । रचनाकार होने के नाते सबसे अधिक हमारा दायित्व हो जाता है कि अच्छे विचारों व सृजन के माध्यम से जन-जन में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाएँ और प्रेरित करें । कार्यक्रम संचालक आदरणीय निहाल चंद्र शिवहरे जी ने माँ वीणावादिनी को नमन करते हुए सभी का अभिवादन कर शुभारम्भ किया । स्वागत अध्यक्ष डाॅ. रवीन्द्र प्रभात जी ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि प्रकृति-संरक्षण हेतु इस तरह के आयोजन सभी के लिए उपयोगी व सार्थक है । मुख्य अतिथि डॉ. सुषमा सिंह जी ने उद्बोधन में कहा कि प्रकृति क्षिति , जल , पावक , गगन समीर की समष्टि हैं , इसी प्रकार हमारी त्वचा पृथ्वी से , जिह्वा जल से , नेत्र अग्नि से , नासिका वायु से और कान आकाश से अपना अंश ग्रहण करके निर्मित हुए हैं । यदि हम इनके समीकरण को अस्त-व्यस्त करते हैं तो पर्यावरण प्रदूषित होता है । विशिष्ट अतिथि इन्दिरा किसलय जी ने कहा कि नैसर्गिक जीवन शैली ही एकमात्र विकल्प है । हम अथर्व वेद के सुक्त को याद रखें ” हे धरती माँ। जो कुछ भी तुझसे लूँगा , वह उतना ही होगा , जितना तू पुन: उत्पन्न कर सके ।” विशिष्ट अतिथि पुष्पा सिंघी ने कहा कि अति महत्वाकांक्षा एवं जागरूकता के अभाव में जीवन के मुख्य तत्व हवा-पानी तक प्रदूषित हो गए हैं , प्राणी मात्र विभिन्न रूपों में इसका दुष्परिणाम झेल रहे हैं , साहित्यकार कलम का धर्म निभाएँ ।

पर्यावरण एवं प्रकृति से सम्बन्धित हाइकुओं में सभी हाइकुकारों ने समस्या और समाधान का सुन्दर प्रस्तुतीकरण किया । अंजू निगम जी ने चाँद का दिया / रात भर जागता / आशा बिखेरे । हाइकु में आशा से सराबोर जीवन , डॉ. नीना छिब्बर जी ने स्वर्ण समान / तू मानव संभाल / जल की बूंदें । हाइकु में जल संरक्षण की सचेतनता , डॉ. आनंद प्रकाश शाक्य जी ने धुँआ ही धुँआ / उगलती मीनारें / जीना दूभर ।हाइकु में भौतिकता की अंधी दौड़ का दुष्परिणाम , डॉ. सुभाषिनी शर्मा जी ने धरा बचायें / कर दें हरा भरा / पेड़ लगायें । हाइकु में पृथ्वी को बचाने का आह्वान , डॉ. सुरंगमा यादव जी ने रेत माफिया / छलनी कर रहे /नदी का जिया । हाइकु में अति महत्वाकांक्षाओं का दर्पण , डॉ. कल्पना दुबे जी ने कुआँ बावड़ी /नहर नहीं ताल / देखेंगे चित्र । हाइकु में आगत की चिन्ता का चित्रण , डॉ. सुषमा सिंह जी ने आरी चलती /स्वयं को ही छलती / मानव जाति । हाइकु में मनुष्य की अज्ञानता की , डॉ. मिथिलेश दीक्षित जी ने प्रकृति कहें / अथवा परमात्मा /बात एक है ।हाइकु में जीवन का गहन दर्शन व आध्यात्मिकता का समावेश , पुष्पा सिंघी ने समझे कौन / वसुन्धरा की पीर / पसरा मौन । हाइकु में धरती की व्यथा की अभिव्यक्ति , इन्दिरा किसलय जी ने चाँद पर बस्ती / बसा लेना बाद में / पृथ्वी बचा लो । हाइकु में जमीनी हकीकत को जानने की बात , वर्षा अग्रवाल जी ने जीवनदायी / पीपल वृंदा नीम / है सुखदायी । हाइकु में प्राणवायु देने वाले वृक्षों का महत्व , साधना वैद जी ने पंकिल धारा / क्षत विक्षत शव / तेरे जल में । हाइकु में वर्तमान स्थिति की भयावहता , डॉ. सरस दरबारी जी ने उज्ज्वल नभ / चिमनियाँ सुषुप्त / वायु है शुद्ध । में प्रकृति के साथ स्वच्छ परिवेश , प्रतिमा प्रधान जी ने दर्द का धुँआ / जमीन से आसमाँ / गैस चैम्बर । हाइकु में रासायनिक प्रयोगों के दुष्परिणाम , डॉ. शैलेष गुप्त वीर जी ने मनु-संतति / जोश में होश खोयी / वसुधा रोयी । हाइकु में मनुष्य की भागा-दौड़ी से खंडित भू का दर्द , निहाल चंद्र शिवहरे जी ने बूंदों का स्वर / सौंधी सौंधी गंध / गाँव की माटी । हाइकु में प्रकृति के सौम्य रूप से मन और माटी की महक को कलमबद्ध किया है ।

फ्रैंकलिन रूजवेल्ट के अनुसार एक देश जो अपनी मिट्टी खत्म कर देता है , वह अपने आप को नष्ट कर देता है । जंगल हमारी जमीन के फेफड़े हैं । वे हमारी हवा को शुद्ध करते हैं और लोगो को नयी ऊर्जा देते है । अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में डाॅ. शैलेष गुप्त जी ने संदर्भित विषय पर विचार प्रस्तुत करते हुए यह बात कही ।
सभी प्रबुद्ध हाइकुकारों ने इस सफल व शानदार संगोष्ठी में पर्यावरण को परिलक्षित किया और साथ ही सचेतनता की ज्योति को प्रज्ज्वलित किया ।
पुष्पा सिंघी
कटक