कविता : पिता

पिता
जन्म देती माँ,योगदान पिता का भी होता है।
पालती गोद में माँ,पोषक तो पिता ही होते हैं।।
लाड़ प्यार करते मन से, दिखाते नहीं कभी।
जीवन में अनुशासन की महत्ता बताते पिता।।
अपनी तंग जेब होने पर भी कभी बताते नहीं।
जरूरत की हर चीज लाकर देते समय पर ही।
खुद अपनी परवाह न कर, सुविधा सारी जुटाते
अच्छे-बुरे का फ़र्क बता जीवन में आगे बढ़ाते।
कैसे संतान सुखमय जीवन बीताए, चिंता में रहते,
ओवरटाइम खटते,मुख पर फिर भी शिकन न लाते।
खुद सूखी रोटी खाकर,मेवा संतान की जुटाते,
खुशी रहे संतान,बचत करके बाहर घूमने ले जाते।
जब तक संतान सफल न हो ऊंचे आदर्श दिखाते,
पढ़ाई-लिखाई में खर्चे कर योग्यता ऊंची दिलवाते।
कर्म के बल ही जीवन में सफलता मिलती बताते।
कर्म सही दिशा में करवाते, कर्मयोगी हमें बनाते।।
बच्चे से बिछड़ने का ग़म उन्हें भी होता,पर न जताते,
विदेश जाते संतान को देख आंखों की नमी छुपाते।
भावनाओं का समंदर दिल में दबा पिता सदा मुस्कुराते,
दर्द बांटते हमारा, हमें सहनशीलता का पाठ पढ़ाते।
शादी ब्याह करवाते, सभी फ़र्ज़ पिता बखूबी निभाते।
इस जग में हम अपनी पहचान पिता के कारण ही बना पाते।
रीता झा
कटक ,ओडिशा