परीक्षा भवन का वह दृश्य देखकर मन में हर बार एक ही सवाल उठता है ,
क्या यह वही शैतान बच्चों की टोली है ?
जो साल भर नाक में दम कर रखते हैं ।
कितने मासूम ,अनुशासित और विनम्र,
परीक्षा रूपी दानव ने जैसे
इनका बचपन ही छिन लिया है। परेशान चेहरा और मुस्कुराहट गायब है ।
ज्ञान या सीख नहीं ,यह तो बस अंको का खेल है ।
अभिभावकों का दबाव और शिक्षकों की उम्मीद ,
उन्हें चैन से जीने नहीं देता। प्रायोगिक ज्ञान की बातें करते हैं, पर उन्हें रट्टू तोता बनाते हैं ।साल भर की पढ़ाई को ,
3 घंटों में परख लेते हैं ।
उनकी इच्छा ,हुनर और प्रतिभा को दफनाकर ,
प्रतियोगियों के कतार में खड़ा करने पर
मुझे ऐतराज़ है ।
अपने सपने पूरे करने की चाहत में ,
उनके पंख काटने पर ,
मुझे एतराज है ।
जी हाँ ,मुझे ऐतराज़ है।

लतिका सड़ंगी 

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